माल्टा द्वीप मिं पौलुसक चमतकार
(प्रेरितों २८:१-१४)
28
1 जब हम सब समुद्र बे बचिबेर भ्यार पुज्यूं, तब हमुकैं पत्त चलौ कि ऐल हम माल्टा नामक द्वीप मिं छूं। 2 तब वांक मैंसोंल हमुमिं दया करी और हमर स्वागत करिबेर ऑग लै जगा, किलैकि द्वियो हुणल जाड़ है रौछी। 3 जब पौलुसल लाकॉड़ जॉम करिबेर ऑग मिं खितीं, तब अचानक ऑगक राफ लागणल एक स्यापल पौलुसक हात मिं काटि दे। 4 तब वांक मैंस उ स्याप कैं पौलुसक हात मिं लपेटी देखिबेर आपस मिं कूण लागी, "पक्क यौ मैंस खूनी छु, समुद्र बे तो बचि गो, फिर लै ईश्वरल यकैं ज्यून रुणक लैक नि समझ!" 5 लेकिन पौलुसल स्याप कैं ऑग मिं छटके दे, और उकैं के नि हौय। 6 पर उं सब मैंस यौ इंतजार करणाछी, कि वीक हात सुजल या उ बिहोश हबेर मरि जॉल। जब उं भौत देर तलक इंतजार करनै मिं छी, और उकैं के नि हौय, तब उं आपण सोच बदेइबेर कूण लागीं, "यौ क्वे ईश्वर छु!"7 यौ जॉगक नजिक वांक ठुल अधिकारी पुबलियुसॉक मैदान छी, वील हमुकैं बुलैबेर तीन दिन तलक हमर खातिरदारी करी। 8 जब पुबलियुसॉक बौज्यू जर और पेट कटाइल बिमार हबेर भितेर पड़ि राछी, तब पौलुस उनुकैं देखणक लिजी भितेर गो, और प्रार्थना करिबेर उनुमिं हात धरौ, और उं चंग है ग्याय। 9 और यौ सुणिबेर वांक सब बिमार मैंस वीक पास ऐबेर चंग हुण लागीं। 10-11 उनुल हर प्रकारल हमर मान-पान करौ। और जब हम तीन म्हैणक बाद उ जॉग बे दुसर जहाज मिं जाणाछी, तब उनुल हमर जरवतक सब चीज जहाज मिं धरि दे।
12 वांबे हम सरकुता मिं पुजिबेर तीन दिन तलक वैं रयूं। 13 वीक बाद हम वांबे घुमिबेर रेगियुस पुज्यूं, और तिसर दिन हम पुतियुली मिं पुज्यूं। 14 वां हमुकैं थ्वाड़ विश्वासी मिलीं, उनुल हमुधैं विनती करी, कि हम उनर दगाड़ सात दिन तलक वैं रुकूं।
रोम मिं
(प्रेरितों २८:१५-३१)
यैक बाद जब हम रोमक नजिक पुज्यूं, तब वांक विश्वासी यौ बात सुणिबेर हमर दगाड़ भेट करणक लिजी आईं। 15 उनुकैं देखिबेर पौलुस कैं बढ़ हरीस हौ, और वील उनर लिजी धन्यवाद दे।
16 रोम मिं पौलुस आपण रुणक लिजी एक कम्र किराय मिं ली सकछी, पर वां लै उमिं नजर धरणी एक सिपै छी।
17 फिर पौलुसल वां रुणिवॉल यहूदियोंक खाश मैंसों कैं बुला, और जब उं सब ऐबेर एक दगाड़ जॉम हईं, तब वील उनुधैं कौ, "भाइयो, मील आपण जाति और आपण पुरखोंक रीती-रिवाजक खिलाफ के नि कर, फिर लै मिकैं यरुशलेम बे बन्दी बणैबेर रोमियोंक हात सौंपि गो। 18 उनुल पत्त-पाणि करणक बाद मिकैं छोड़ि दिण चा, किलैकि मिकैं मौतक सजा दिणक क्वे कारण नि छी। 19 जब यहूदियोंल विरोध करौ, तब मिकैं सम्राट धैं अपील करण पड़ी। पर मी आपण जाति मिं क्वे दोष नि लगूण चांछी। 20 यैक लिजी मील तुमुकैं यां बुलवा, कि मी तुमर दगाड़ भेट-घाट करिबेर बात-चीत करुं। किलैकि मी यैक लिजी बादी छूं कि मी तुमरै चारि परमेश्वरक यौ वैद मिं भरौस करनू कि उं आपण मैंसों कैं बचाल।"
21 यौ सुणिबेर यहूदियोंल पौलुस धैं कौ, "यरुशलेम बे त्यर बारि मिं हमुकैं क्वे चिट्िठ नि मिलि, और न क्वे खबर मिलि। 22 लेकिन हम तेरि बात सुणणक लिजी तैय्यार छूं, किलैकि हमुकैं यैक बारि मिं यौ मालुम चलौ कि सब जॉगॉक मैंस यैक खिलाफ मिं बात करणईं।"
23 तब उं एक दिन तय करिबेर पौलुसक पास आईं, और पौलुसल उनुकैं परमेश्वरक रॉजक बारि मिं समझा और मोशेश और नबियोंक लिखी किताब बे यीशुक बारि मिं उनुकैं समझूणक कोशिश करी। 24 और थ्वाड़ मैंसोंल वीक बात मिं भरौस करौ, लेकिन औरोंल भरौस नि कर।
25 तब पौलुसल उनर जाण बखत कौ, "पवित्र आत्माल यशायाह नबीक जरियल हमार पुरखों धैं ठिक कौ,
26 "तुम म्यर बात तो सुणला, पर नि समझला।
तुम म्यर काम तो देखला, पर उनर मतलब नि जाणला।
किलैकि यौं मैंसोंक मन निठूर है गो,
और यौं कानोंल नि सुणन,
ऑखोंल नि देखन,
और दिमागल नि समझन।
यैक लिजी उं मन फिराव नि करि सकन,
जैल मी उनार पाप माफ करुं।"
28 ऑब तुम जाणि लियो, परमेश्वरक मुक्ति अन्य जातियोंक लिजी लै छु, और उं यकैं मानॉल।"
29 और जब वील यौ सब बात कै हैछी, तब यहूदियोंल आपस मिं यैक बारि मिं बाद-विवाद करनै वांबे न्है ग्याय।
30 तब पौलुस आपण किरायक घर मिं पुर द्वी साल रौ, और जो वीक पास उंछी, उ वीक स्वागत करछी। 31 और निडर हबेर यीशु मसीक बारि मिं सिखूनै रौ।