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हे पिरीय मन, अबर मय तमके ये दुसरा पतरी लिकबी आची, आवरी दुनो ने शुधि दिआय करी तमर शुध मन के दकाय बी आची, 2 की तमी हांय गोट मन के जोन पवितर भविष बकता मन ने पईले ले बलला आचे, आवरी परभु आवरी उधार करू र हांय आगेया के सुरता करा जोन तमर पेरिरीत मन र बाटले दिया जाई रये | 3 पईले ये जाना की सरा सरी दीने हासी उड़ाय बा लोक आयबाय जोन आपना ची अभिलाषा मनर अनुशार चल बाय 4 "आवरी बलबाय, ""हातार आयबार परतिग्या केने गला ? कसन की जड़ दाय ले पाप दादी सोयला आत, सबु काई असनी ची आय जसन पूर्ती र मुर ले रये ?""" 5 हांय मन तो जानी बुझी करी भुलकी गलाय की माहा परभु र बचन र बाटले आकाश पईल जुग ले आगले आचे आवरी धरतनी बले पानी थान ले बनी आवरी पानी ने मंडला आचे, 6 ई लागी हांय जुग र जगत पानी ने बूड़ी करी नाश होयला | 7 मातर एबर जुग र आकाश आवरी धरतनी ये बचन र बाटले ई काचे सोंगाय गला आचे की पड़ाय दिया जाओ ; आवरी ये भक्ति हीन मुनूक र निआवं आवरी नाश होयबा दीन दाय ले असनी ची सोंगाय ररबाय | 8 हे पिरीय मन, ये गोट तमर थान ले लुकी ना रओ की परभु र ये थाने गोटक दीन हजार बरस र असन आय, आवरी हजार बरस गोटक दीन असन आय | 9 परभु आपना वायदा बारे बेर ना करे, जसन बेर कोनी लोक समझू आत ; मातर तमर बारे ने धीरज धरु आय आवरी ना चाहये की कोनी नाश ना होओत, मातर ये की सबू मन बाहाड़ाय बार समेया मिरो | 10 मातर परभु र दीन चोर असन आयसी, हांय दीने बादरी बड़े गरजन संगे जायते रयसी तत्व खुबे ची तप्त होई करी पिगली जायसी आवरी पुरती आवरी हांय उपर र काम पड़ी जायसी | 11 जड़ दाय ये सबू तीज ये रिती ले पिगलबा बीती आय, तो तमके पवितर चाल - चलन आवरी भक्ति ने कसन मुनूक होयबार चाहये, 12 आवरी माहा परभु र हांय दीन र बाट कोन निती ले जोत बार आय आवरी तार झटके आयबा काचे कसन कोशिश कारबार आय, जाहार लागी आकाश जोय पिगली जायसी, आवरी आकाश र गण खूबे भरी गली जिबाय | 13 मातर तार किरिया र अनुसार हामी गोटक नुआ आकाश आवरी नुआ पुरती र आस दकु आवं जोन मन ने धार मिकता डेरा धरसी | 14 ई काचे हे पिरीय मन, जेबे की तमी ये गोट मनर आस दकु आस, तो कोशिश करा की तमी शान्ति ले हातार छमे निष्कलंक आवरी निर्दोष हुआ, 15 आवरी हामर परभु र धीरज के उधार समझा, जसन हामर पिरीय भाई पौलुस बले हांय गिआन र असन जोन ताके मिरला, तमके लिकला आचे | 16 असनी ची हांय आपना सबू बेटी मन ने बले ये गोट मन के उबजायला आचे, जोन्ति कतक गोट मन असन आय जाहार समझ बार मुसकिल आय, आवरी अनपड़ आवरी चंचल लोक तिकर अरथ मन के बले पवित्र शास्त्र र दुसरा गोट मनर असन उरा पूरा करी आपनार ची नाश र कारण बनाऊ आत | 17 ई काचे हे पिरीय मन, तमी पयले ले ची ये गोट मन के जानी करी चेत ने राहा, की अधरमी मनर भरम ने फसी करी आपना र जगा के केनई भुलकी ना दीआस | 18 मातर हामर परभु आवरी उधार करू यीशु मसीह र अनुगरह आवरी पयचान ने बाड़ते जाहा |हातार ची महीमा अबर बले होओं, आवरी जुग जुग होयते रओ |आमेन |