दान देहे कर सिकछा
6
1 “सवाचेती रहा! तुमन मईनसे मन कर आगु में ओमन ला देखाए बर, भलाई कर काम झईन करा, नहीं तो तुमन अपन सरग कर दाऊ ले कांहीच फल नई पईहा।”2 “एकर ले जब तुमन कोनो दीन-दुखी मईनसे ला दान देथा, त ओकर ढोल झईन पिटवा, जेकस कि ढोंगी मईनसे मन धरम सभा कर घर अऊ गली मन में करथें, तेमेकि मईनसे मन ओमन कर बड़ाई करें। मंए तुमन ला फूरोंच कहथों कि, ओमन एकर पूरा फल आगूच ले पाए गईन हवें। 3 बकीन जब तुमन दीन दुखी मईनसे मन ला दान देथा, त तुमन कर डेरी हांथ हर झईन जाएन पाए कि तुमन कर जवनी हांथ हर का करत हवे। 4 तेमेकी तुमन कर दान देवई हर लूकाल रहे। तब तुमन कर सरग कर दाऊ, जेला तंए लूकाए के करथस ओहू ला देखथे, ओहर तुमन ला इनाम देही।”
पराथना कर सिकछा
5 “जब तुमन पराथना करथा, त ढोंगी मईनसे मन कस झईन करा, काबरकि मईनसे मन ला देखाए बर, धरमसभा कर घर अऊ गली कर चउक मन में ठड़होए के पराथना कराई, ओमन ला बढ़ियां लागथे। मंए तुमन ला फूरोंच कहथों कि ओमन अपन पूरा इनाम पाए गईन। 6 बकिन जब तुमन पराथना करथा, त अपन बईंगरा में जा, अऊ केवारी ला ढांएक के, बिगर देखार कर अपन दाऊ जेहर सरग में रथे ओकर जग पराथना करा जेहर नई दिखे। तब तुमन कर दाऊ जेहर लूकाए के करल कामोच ला देखथे, तुमन ला फल देही।”
7 “अऊ जब तुमन पराथना करथा, त गएर एहूदी मन कस बे मतलब कर बात मन ला बार-बार झईन दोहरावा, काबरकि ओमन सोंचथें कि ओमन कर ढेर गोठियाए कर चलते, परमेसवर हर ओमन कर सुनही। 8 एकर बर तुमन ओमन कस झईन बना, काबरकि तुमन कर मांगे कर आगु तुमन कर दाऊ जेहर सरग में रथे ओहर जानथे कि, तुमन ला का चीज कर जरूरत हवे।”
9 “तुमन ए नियर पराथना करा,
“ए हमर दाऊ, तंए जेहर सरग में हवस,
तोर नांव हर पबितर मानल जाए,
10 तोर राएज आवे,
जेकस तोर ईछा सरग में पूरा होथे,
ओईसनेच धरतीयोच में पूरा होए।
11 हमके ला आएज भेर कर खाना दे
12 हमर पाप ला छमा कएर दे,
जेकस हमरे ओमन ला छमा करे हन,
जेमन हमर बिरोध में कसेर करीन हवें।
13 हमके ला पाप में गिरे झईन दे,
बकिन बुराई ले बचा,
(काबरकि राएज अऊ पराकरम अऊ महिमा हमेसा तोर हवे। आमीन।)”
14 “अगर तुमन मईनसे मन ला छमा करिहा, जेमन तुमन कर बिरोध में कसेर करीन हवें, त तुमन कर सरग कर रहोइया दाऊओच हर तुमन कर पाप ला छमा करही। 15 बकीन कहों तुमन मईनसे मन ला छमा नई करिहा, त तुमन कर सरग कर रहोइया दाऊ हर तुमन कर पाप ला छमा नई करही।”
उपास कर सिकछा
16 जब तुमन उपास करथा, त तुमन अपन चेहरा ला उदास झईन देखावा, जेकस कि ढोंगी मन करथें, काबरकि ओमन अपन चेहरा ला लोरमाए रथें, तेमेकी मईनसे मन देखें कि ओमन उपास में हवें, मंए तुमन ला फूरोंच कहथों कि, ओमन अपन सबेच इनाम ला पाए चुकिन। 17 बकिन जब तुमन उपास करथा, त अपन मूड़ में तेल चुपरा अऊ मूंह ला धोआ। 18 तेमेकी मईनसे मन कर आगु में ए झईन देखावा, कि तुमन उपास करत हा, बकिन सिरीप तुमन कर दाऊ हर जाने, जेहर नई दिखे। अऊ तुमन कर दाऊ जेहर लूकाए के करल सब काम ला देखथे, तुमन के ओकर इनाम देही।
सरग में धन ला राखिहा
19 अपन बरीक ए धरती में धन झईन जुटावा, जिहां कीरा अऊ मूरचा एला नास करथे, अऊ चोर मन सेंध फोएर के चोराए लेथें। 20 बकिन अपन बर सरग में धन जुटावा, जिहां कीरा अऊ मुरचा एला नास करे बर नई सके, अऊ चोर मन सेंध फोएर के चोराए बर नई सकें। 21 काबरकि जिहां तुमन कर धन हवे, उहां तुमन कर मनोच हर लगे रही।
देंह कर इंजोर
22 देंह कर ढेबरी आंएख हर हवे, अगर तुमन कर आंएख हर बढ़िहां हवे, त तोर सबेच देंह हर इंजोर ले भएर जाही। 23 बकिन अगर तुमन कर आंएख हर बुरा हवे, त तुमन कर सबेच देंह हर अंधार ले भएर जाही। एकरे चाड़हे ओ इंजोर जेहर तुमन में हवे, अगर अंधार होए जाथे, त ओहर केतना बड़खा अंधार होही।
24 “कोनोच मईनसे हर दुई झन मालीक कर सेवा नई कएर सके, चाहे तो ओहर एक झन ले बएर करही अऊ दूसर झन ले मया, चाहे फेर ओहर एक झन ले मिले रही अऊ दूसर झन ला घिनक जानही। तुमन परमेसवर अऊ धन दुनों कर सेवा नई कएर सका।”
चिंता झईन करा
25 एकर ले मंए तुमन ला कहथों, कि अपन जिनगी कर चिंता झईन करा कि का खाहूं चाहे का पीहूं अऊ अपन देंह कर बारे में चिंता झईन करा कि का पहिरहूं। का जिनगी हर खाना ले ढेरेच बईड़ के नईए अऊ देंह हर ओढ़ना ले बढ़ के नईए? 26 अगास कर चराई मन ला देखा! ओमन नईं बुनें अऊ नई लूएं अऊ कोठी में नई राखें, तबो ले तुमन कर सरग कर रहोईया दाऊ हर ओमन ला खवाथे। का तुमन कर कीमत हर ओकर बरीक तो ओ चराई मन ले बगरा नईए? 27 तुंमन में ले कोन हर चिंता कएर के अपन जिनगी में एकोच घरी बड़हाए सकथे? 28 तुमन ओढ़ना बर काबर चिंता करथा? खेत कर जंगली फूल मन ला देखा ओमन कईसे बाढ़थें, ओमन तो मेहनत नई करें अऊ ओढ़ना नई बिनें। 29 तबो ले मंए तुमन ला फूरोंच में कहथों, राजा सुलेमानोच हर अपन सबेच धन संपती रहीयो के, ए फूल मन ले ककरो कस सुघर सफरे बर नई सकीस। 30 एकर ले जब परमेसवर हर खेत कर घांस मन ला, जेहर आएज हवे अऊ काएल आगी में लेस देहल जाही, एतना बढ़िहां ओढ़ना पहिराथे, त ए कम वइसवास करोईया मन, परमेसवर हर तंहू मन ला एकरो ले बढ़िहां पहिराही?
31 एकरे ले तुमन ए कहि के चिंता झईन करा, कि का खाबो? चाहे का पीबो? चाहे का पहिरबो? 32 काबरकि गएर एहूदी मन ए सब जाएत कर खोज में रथें। तुमन कर सरग कर दाऊ हर जानथे कि तुमन ला ए सब जाएत कर जरूरत हवे। 33 एकर ले तुमन सब ले आगु परमेसवर कर राएज अऊ ओहर का चाहथे, ओकर खोज करा, तब ए सबेच जाएत हर तुमन के देहल जाही। 34 एकरे बर काएल कर चिंता झईन करा, काबरकि काएल कर दिन हर अपन चिंता खुद कएर लेही। आएज कर दुख हर आएज बरिक ढेरेच हवे।