10
1 यौ भाइ लोकनि, हमर हार्दिक इच्छा आ परमेश्वर सँ प्रार्थना अछि जे इस्राएली सभ उद्धार पबथि। 2 हम हुनका सभक सम्बन्ध मे ई गवाही दऽ सकैत छी जे, हुनका सभ केँ परमेश्वरक प्रति जोस छनि, मुदा ई जोस सत्यक ज्ञान पर आधारित नहि छनि। 3 कारण, ओ सभ धार्मिक ठहरबाक ओहि माध्यम पर ध्यान नहि देलनि जे परमेश्वर स्थापित कयलनि, बल्कि अपन माध्यम स्थापित करबाक प्रयत्न कयलनि। एहि तरहेँ ओ सभ परमेश्वर द्वारा देल जाय वला धार्मिकताक अधीन भेनाइ अस्वीकार कयलनि। 4 मसीह धार्मिकता प्राप्त करबाक ओहि माध्यम केँ अन्त करैत छथि जे धर्म-नियम पर निर्भर रहैत अछि, जाहि सँ जे केओ विश्वास करैत अछि से धार्मिक ठहराओल जाय।
5 मूसा धर्म-नियम पर आधारित धार्मिकताक विषय मे ई लिखने छथि जे, “जे व्यक्ति धर्म-नियमक पालन करैत अछि से ओहि द्वारा जीवन पाओत।”a 6 मुदा जे धार्मिकता विश्वास पर आधारित अछि, ताहि सम्बन्ध मे ई लिखल अछि, “अपना मोन मे ई नहि कहू जे, ‘स्वर्ग पर के चढ़त?’b” अर्थात्, मसीह केँ नीचाँ लयबाक लेल। 7 “वा ‘पाताल मे के उतरत?’c” अर्थात्, मुइल सभ मे सँ मसीह केँ जिआ कऽ ऊपर अनबाक लेल। 8 विश्वास पर आधारित धार्मिकताक सम्बन्ध मे यैह लिखल अछि जे, “वचन अहाँ सभक लगे मे अछि, ओ अहाँक मुँह मे आ अहाँक हृदय मे अछि,”d अर्थात्, ई विश्वासक वचन, जकर हम सभ प्रचार करैत छी जे, 9 जँ अहाँ अपना मुँह सँ खुलि कऽ स्वीकार करी जे, “यीशु प्रभु छथि,” आ हृदय सँ विश्वास करी जे, “परमेश्वर हुनका मुइल सभ मे सँ जिऔलथिन” तँ अहाँ उद्धार पायब। 10 किएक तँ हृदय सँ विश्वास कऽ मनुष्य धार्मिक ठहरैत अछि; मुँह सँ स्वीकार कऽ उद्धार पबैत अछि। 11 धर्मशास्त्र सेहो कहैत अछि जे, “जे केओ हुनका पर भरोसा राखत, तकरा कहियो लज्जित नहि होमऽ पड़तैक।”e 12 यहूदी आ आन जाति मे कोनो भेद नहि अछि—एके प्रभु सभक प्रभु छथि, आ जे सभ हुनका सँ प्रार्थना करैत अछि, ताहि सभ लोक पर ओ खुशीपूर्बक अपन आशिष बरसबैत छथि। 13 कारण, लिखल अछि, “जे केओ प्रभु सँ विनती करत तकर उद्धार होयतैक।”f
14 मुदा लोक तिनका सँ विनती कोना करत जिनका पर विश्वास नहि कयने अछि? आ तिनका पर विश्वास कोना करत जिनका विषय मे सुनने नहि अछि? आ सुनत कोना जाबत धरि केओ हुनका सम्बन्ध मे प्रचार नहि करत? 15 और लोक प्रचार कोना करत जाबत धरि पठाओल नहि जायत? धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, “खुस खबरी सुनौनिहारक पयरक आगमन कतेक सुखद अछि।”g 16 मुदा सभ इस्राएली एहि शुभ समाचार केँ मानलनि नहि। जेना कि यशायाह कहैत छथि जे, “यौ प्रभु, हमरा सभक द्वारा सुनाओल गेल उपदेशक बात पर के विश्वास कयने अछि?”h 17 एहि तरहेँ अपना सभ देखैत छी जे, सुनलाक बादे केओ विश्वास कऽ सकैत अछि, आ जे सुनबाक अछि, से अछि मसीहक वचन।
18 मुदा आब हम पुछैत छी जे, “की ओ सभ नहि सुनने छथि?” हँ, ओ सभ अवश्य सुनने छथि, जेना कि धर्मशास्त्र कहैत अछि जे,
“सम्बाद सुनाबऽ वला सभक स्वर समस्त पृथ्वी पर पसरि गेल अछि
आ हुनकर सभक वचन संसारक कोना-कोना मे पहुँचि गेल अछि।”i
19 हम फेर पुछैत छी, “की इस्राएली सभ ओ शुभ समाचार नहि बुझि पौलनि?” हँ, अवश्य बुझलनि, कारण, पहिने मूसा कहलनि जे, प्रभु कहैत छथि—
“जे सभ कोनो जातिए नहि अछि, तकरा सभक द्वारा हम तोरा सभ मे डाह उत्पन्न करबह,
आ जाहि जातिक लोक सभ किछु बुझैत नहि अछि, तकरा सभक द्वारा हम तोरा सभ मे क्रोध उत्पन्न करबह।”j
20 तखन यशायाह एकदम खुलि कऽ कहलनि जे, प्रभु कहैत छथि—
“जे सभ हमरा तकैत नहि छल, से सभ हमरा पाबि लेलक,
आ जे सभ हमरा सम्बन्ध मे पुछितो नहि छल, तकरा सभ पर हम अपना केँ प्रगट कऽ देलिऐक।”k
21 मुदा इस्राएली सभक सम्बन्ध मे ओ ई कहैत छथि,
“आज्ञा नहि मानऽ वला आ जिद्दी अपन प्रजा सभक दिस
हम भरि दिन अपन बाँहि पसारने रहलहुँ।”l