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पापक लेखेँ मुइल, परमेश्‍वरक लेल जीवित
1 तखन की, अपना सभ आओर पाप करैत रही जाहि सँ परमेश्‍वर आओर कृपा करथि? 2 किन्‍नहुँ नहि! अपना सभ जे पापक लेखेँ मरि गेल छी, आब पाप मे जीवन कोना व्‍यतीत करब? 3 की अहाँ सभ ई नहि जनैत छी जे, अपना सभ गोटे जे बपतिस्‍मा लऽ कऽ मसीह यीशु मे सहभागी भेलहुँ से हुनका मृत्‍यु मे सेहो सहभागी भेलहुँ? 4 तेँ अपना सभ बपतिस्‍मा द्वारा हुनका मृत्‍यु मे सहभागी भऽ हुनका संग गाड़ल सेहो गेल छी जाहि सँ जहिना यीशु मसीह पिता परमेश्‍वरक महिमा द्वारा मुइल सभ मे सँ जिआओल गेलाह तहिना अपनो सभ एक नव जीवन जीबी। 5 जँ हुनका मृत्‍यु मे अपना सभ हुनका सँ संयुक्‍त भऽ गेल छी, तँ निश्‍चय हुनका जीबि उठनाइ मे सेहो अपना सभ हुनका सँ संयुक्‍त भऽ जायब। 6 अपना सभ केँ ई कखनो नहि बिसरबाक चाही जे अपना सभक पहिलुका स्‍वभाव हुनके संग क्रूस पर चढ़ा देल गेल, जाहि सँ अपना सभ मेहक पापपूर्ण “हम” मरि जाय आ अपना सभ फेर पापक दास नहि बनी, 7 किएक तँ मरल आदमी पर पाप केँ कोनो शक्‍ति नहि रहि जाइत छैक।
8 आब जँ अपना सभ मसीहक संग मरलहुँ तँ अपना सभ विश्‍वास करैत छी जे हुनका संग जीवित सेहो रहब। 9 किएक तँ अपना सभ जनैत छी जे मसीह मुइल सभ मे सँ जिआओल गेलाक बाद फेर कहियो नहि मरताह। आब मृत्‍यु केँ हुनका पर कोनो अधिकार नहि रहल। 10 ओ जखन मरलाह तँ पाप केँ पराजित करबाक लेल सदाक लेल एके बेर मरलाह, आ जीबि उठि कऽ ओ आब परमेश्‍वरेक लेल जीबैत छथि। 11 एही तरहेँ अहाँ सभ सेहो अपना केँ पापक लेखेँ मुइल आ मसीह यीशु मे परमेश्‍वरक लेल जीवित बुझू।
12 एहि लेल आब अहाँ सभ अपन नश्‍वर शरीर मे पाप केँ राज्‍य नहि करऽ दिअ जे ओकर अभिलाषा सभक अनुसार जीवन व्‍यतीत करी। 13 अहाँ सभ अपना शरीरक अंग सभ केँ दुष्‍टताक साधनक रूप मे पाप करबाक लेल समर्पित नहि करू। बल्‍कि मृत्‍यु सँ जीवन मे लाओल लोक सभ जकाँ अपना केँ परमेश्‍वर केँ समर्पित कऽ दिअ आ शरीरक अंग सभ केँ नीक काज करबाक साधनक रूप मे परमेश्‍वर केँ अर्पित करू। 14 तखन पाप अहाँ सभ पर राज्‍य नहि कऽ पाओत, किएक तँ अहाँ सभ धर्म-नियमक अधीन नहि, बल्‍कि परमेश्‍वरक कृपाक अधीन छी।
पापक नहि, बल्‍कि परमेश्‍वरक दास
15 तखन की? की अपना सभ जँ धर्म-नियमक अधीन नहि, बल्‍कि परमेश्‍वरक कृपाक अधीन छी, तँ एहि कारणेँ पाप करी? किन्‍नहुँ नहि! 16 की अहाँ सभ नहि जनैत छी जे जकर आज्ञा मानबाक लेल अहाँ सभ अपना केँ दासक रूप मे समर्पित करैत छी, अहाँ सभ तकरे दास छी?—ओ चाहे पापक होइ, जकर परिणाम मृत्‍यु अछि, चाहे आज्ञाकारिताक, जकर परिणाम धार्मिकता अछि। 17 परमेश्‍वर केँ धन्‍यवाद जे अहाँ सभ, जे सभ एक समय मे पापक दास छलहुँ, आब पूरा मोन सँ ओहि शिक्षाक आज्ञाकारी भऽ गेल छी जाहि मे अहाँ सभ सौंपल गेलहुँ। 18 अहाँ सभ पाप सँ मुक्‍त कयल गेलहुँ और आब धार्मिकताक दास भऽ गेल छी। 19 हम ई साधारण मानव जीवनक उदाहरण, अर्थात्‌ दास आ मालिकक उदाहरण, एहि लेल प्रयोग कऽ रहल छी जे अहाँ सभक मानवीय दुर्बलताक कारणेँ बात बुझनाइ अहाँ सभक लेल कठिन अछि। अहाँ सभ जहिना पहिने अपना शरीरक अंग केँ अशुद्धता आ अधर्मक अधीन कयने छलहुँ, जाहि सँ दुराचार बढ़ल, तहिना आब अपना शरीरक अंग केँ धार्मिकताक अधीन करू, जाहि सँ अहाँ सभ पवित्र बनी।
20 किएक तँ जखन अहाँ सभ पापक दास छलहुँ तँ धार्मिकताक नियन्‍त्रण सँ अहाँ सभ स्‍वतन्‍त्र छलहुँ। 21 ओहि समय मे अहाँ सभ केँ ओहि कर्म सँ की लाभ भेल? आब ओहि बात सँ लज्‍जित होइत छी, कारण, ओकर परिणाम मृत्‍यु अछि। 22 मुदा आब अहाँ सभ पाप सँ छुटकारा पाबि परमेश्‍वरक दास बनि गेल छी, जकर फल अछि पवित्रता आ जकर परिणाम अछि अनन्‍त जीवन। 23 किएक तँ पापक मजदूरी अछि मृत्‍यु, मुदा परमेश्‍वरक वरदान अछि अनन्‍त जीवन जे अपना सभक प्रभु, मसीह यीशुक माध्‍यम सँ प्राप्‍त होइत अछि।