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यीशु—विश्राम-दिनक मालिक
(मत्ती 12.1-14; मरकुस 2.23-28; 3.1-6)
1 कोनो विश्राम-दिन कऽ यीशु खेत दऽ कऽ जा रहल छलाह; हुनकर शिष्‍य सभ अन्‍नक बालि तोड़ि हाथ सँ मीड़ि-मीड़ि कऽ खाय लगलाह। 2 एहि पर किछु फरिसी सभ कहलथिन, “जे काज विश्राम-दिन मे करब धर्म-नियमक अनुसार मना अछि, से अहाँ सभ किएक कऽ रहल छी?”
3 यीशु उत्तर देलथिन, “की अहाँ सभ कहियो नहि पढ़ने छी जे, दाऊद आ हुनकर संगी सभ जखन भुखायल छलाह तँ ओ की कयलनि? 4 ओ परमेश्‍वरक भवन मे जा कऽ परमेश्‍वर केँ चढ़ाओल रोटी लऽ लेलनि। जाहि रोटी केँ खयबाक अधिकार पुरोहित केँ छोड़ि आरो ककरो नहि छलैक, तकरा ओ अपनो खयलनि आ संगियो सभ केँ देलथिन।” 5 तकरबाद यीशु इहो कहलथिन, “मनुष्‍य-पुत्र विश्रामो-दिनक मालिक छथि।”
6 एक अन्‍य विश्राम-दिन यीशु सभाघर मे जा कऽ उपदेश देबऽ लगलाह। ओहिठाम एक आदमी छल जकर दहिना हाथ सुखायल छलैक। 7 फरिसी आ धर्मशिक्षक सभ यीशु पर दोष लगयबाक आधारक लेल हुनका पर नजरि गड़ौने छलाह जे, देखी ओ विश्राम-दिन मे ककरो स्‍वस्‍थ करताह वा नहि। 8 यीशु हुनकर सभक विचार बुझि गेलाह। तेँ ओ सुखल हाथ वला आदमी केँ कहलथिन, “उठह! सभक आगाँ मे ठाढ़ होअह।” ओ उठि कऽ ठाढ़ भेल।
9 तखन यीशु लोक सभ केँ कहलथिन, “एकटा बात हम अहाँ सभ सँ पुछैत छी। विश्राम-दिन मे धर्म-नियमक अनुसार की करब उचित होयत—नीक वा अधलाह? ककरो जीवनक रक्षा करब वा नष्‍ट करब?” 10 तखन ओ चारू दिस सभ पर नजरि दऽ कऽ ओहि आदमी केँ कहलथिन, “अपन हाथ बढ़ाबह।” ओ हाथ बढ़ौलक, आ ओकर हाथ एकदम ठीक भऽ गेलैक।
11 मुदा एहि पर फरिसी आ धर्मशिक्षक सभ क्रोध सँ भरि गेलाह और एक-दोसराक संग विचारऽ लगलाह जे अपना सभ यीशु केँ की करी?
बारह मसीह-दूत
(मत्ती 10.1-4; मरकुस 3.13-19)
12 ओहि समय मे एक दिन यीशु प्रार्थना करबाक लेल पहाड़ पर गेलाह, आ भरि राति परमेश्‍वर सँ प्रार्थना कयलनि। 13 भोर भेला पर ओ अपना शिष्‍य सभ केँ अपना लग बजौलनि और ओहि मे सँ बारह गोटे केँ चुनि कऽ हुनका सभ केँ अपन “दूत” कहलथिन। 14 ओ लोकनि यैह सभ छलाह—सिमोन, जिनका ओ “पत्रुस” नाम देलथिन, हुनकर भाय अन्‍द्रेयास, याकूब और यूहन्‍ना, फिलिपुस, बरतुल्‍मै, 15 मत्ती, थोमा, अल्‍फेयासक पुत्र याकूब, सिमोन, जे “देश-भक्‍त”a कहबैत छलाह, 16 याकूबक पुत्र यहूदा, और यहूदा इस्‍करियोती जे बाद मे विश्‍वासघाती भऽ गेलनि।
यीशु विशाल जनसमूहक बीच
(मत्ती 4.23-25)
17 यीशु हिनका सभक संग पहाड़ पर सँ नीचाँ आबि एक समतल स्‍थान मे ठाढ़ भेलाह। ओतऽ हुनकर शिष्‍यक विशाल समूह और आन-आन ठामक लोक सभक बड़का भीड़ छल। ओ सभ सौंसे यहूदिया प्रदेश सँ, यरूशलेम सँ, और समुद्रक कछेर पर बसल सूर आ सीदोन नगर सँ हुनकर उपदेश सुनबाक लेल और अपना बिमारी सँ स्‍वस्‍थ होयबाक लेल ओतऽ आयल छल। 18 दुष्‍टात्‍माb सँ पीड़ित लोक सभ सेहो ठीक कयल जाइत छल। 19 सभ केओ यीशु केँ छुबाक कोशिश करैत छल, कारण, हुनका मे सँ जे सामर्थ्‍य बहराइत छल, ताहि सँ सभ लोक स्‍वस्‍थ होइत छल।
धन्‍य के अछि?
(मत्ती 5.1-12)
20 यीशु अपना शिष्‍य सभक दिस तकैत कहऽ लगलथिन,
“धन्‍य छी अहाँ सभ, जिनका किछु नहि अछि,
किएक तँ परमेश्‍वरक राज्‍य अहाँ सभक अछि।
21 धन्‍य छी अहाँ सभ, जे एखन भूखल छी,
किएक तँ अहाँ सभ तृप्‍त कयल जायब।
धन्‍य छी अहाँ सभ, जे एखन कनैत छी,
किएक तँ अहाँ सभ हँसब।
22 “धन्‍य छी अहाँ सभ जखन लोक सभ मनुष्‍य-पुत्रक कारणेँ अहाँ सभ सँ घृणा करत, अपना समाज सँ बारि देत, अहाँ सभ केँ अपमानित करत, और दुष्‍ट मानि कऽ अहाँ सभक नामो नहि लेत। 23 तहिया अहाँ सभ आनन्‍द मनाउ और खुशी सँ कुदू-फानू, किएक तँ स्‍वर्ग मे अहाँ सभक लेल बड़का इनाम राखल अछि। ठीक एहने व्‍यवहार ओकरा सभक पूर्वज सभ परमेश्‍वरक प्रवक्‍ता लोकनिक संग सेहो कयने छलनि।
24 मुदा धिक्‍कार अछि अहाँ सभ केँ, जे सम्‍पत्तिशाली छी,
किएक तँ अहाँ सभ अपन सभ सुख भोगि लेने छी।
25 धिक्‍कार अछि अहाँ सभ केँ, जे एखन तृप्‍त छी,
किएक तँ अहाँ सभ भूखल रहब।
धिक्‍कार अछि अहाँ सभ केँ, जे एखन हँसैत छी,
किएक तँ अहाँ सभ शोक मनायब आ कानब।
26 “धिक्‍कार अहाँ सभ केँ, जखन सभ लोक अहाँ सभक प्रशंसा करत, किएक तँ ठीक एहने व्‍यवहार ओकर सभक पूर्वज सभ ताहि लोकक संग सेहो कयने छलैक जे सभ झूठ बाजि कऽ अपना केँ परमेश्‍वरक प्रवक्‍ता कहैत छल।
दुश्‍मन सँ प्रेम
(मत्ती 5.38-48; 7.12)
27 “मुदा हम अहाँ सभ केँ, जे हमर बात सुनि रहल छी, कहैत छी जे, अपना शत्रु सभ सँ प्रेम करू; जे सभ अहाँ सँ घृणा करैत अछि, तकरा सभक संग भलाइ करू। 28 जे सभ अहाँ केँ सराप दैत अछि, तकरा सभ केँ आशीर्वाद दिऔक। जे सभ अहाँक संग दुर्व्‍यवहार करैत अछि, तकरा सभक लेल प्रभु सँ प्रार्थना करू। 29 जँ केओ अहाँक एक गाल पर थप्‍पड़ मारैत अछि, तँ ओकरा समक्ष दोसरो गाल कऽ दिऔक। जँ केओ अहाँक ओढ़ना छिनैत अछि, तँ अपन कुर्तो ओकरा लेबऽ दिऔक। 30 जे केओ अहाँ सँ किछु माँगय तकरा दिऔक, आ जँ केओ अहाँक कोनो वस्‍तु लऽ लेत तँ ओकरा सँ फेर नहि माँगू। 31 जेहन व्‍यवहार अहाँ चाहैत छी जे लोक अहाँक संग करय, तेहने व्‍यवहार अहूँ लोकक संग करू।
32 “जँ तकरे सभ सँ प्रेम करैत छी जे सभ अहाँ सँ प्रेम करैत अछि, तँ ओहि मे अहाँक प्रशंसाक कोन बात भेल? ‘पापिओ’ सभ तकरा सभ सँ प्रेम करैत अछि जे सभ ओकरा सभ सँ प्रेम करैत छैक। 33 आ जँ अहाँ तकरे सभक भलाइ करैत छी जे सभ अहाँक भलाइ करैत अछि, तँ ओहि मे अहाँक कोन बड़प्‍पन? ‘पापिओ’ सभ तँ एहिना करैत अछि। 34 और जँ अहाँ तकरे सभ केँ पैंच-उधार दैत छी जकरा सँ फेर फिरता पयबाक आशा रखैत छी, तँ ओहि मे अहाँक कोन प्रशंसा? ‘पापिओ’ सभ तँ ई आशा राखि कऽ जे हमरा फेर पूरा भेटि जायत ‘पापी’ सभ केँ पैंच-उधार दैत छैक। 35 नहि! अपना दुश्‍मनो सभ सँ प्रेम करू! ओकरा सभक संग भलाइ करू, और फेर फिरता पयबाक आशा नहि राखि कऽ पैंच-उधार दिऔक। अहाँक इनाम पैघ होयत, और परम-परमेश्‍वरक सन्‍तान ठहरब। कारण, जे सभ धन्‍यवाद देबाक भावना नहि रखैत अछि आ दुष्‍ट अछि, तकरो सभ पर ओ कृपा करैत छथिन। 36 दयालु बनू, जहिना अहाँक पिता दयालु छथि।
दोसर केँ दोषी नहि ठहराउ
(मत्ती 7.1-5)
37 “दोसराक न्‍याय नहि करू, तँ अहूँक न्‍याय नहि कयल जायत। दोसर केँ दोषी नहि ठहराउ, तँ अहूँ दोषी नहि ठहराओल जायब। माफ करिऔक, तँ अहूँ केँ माफ कयल जायत। 38 दिऔक, तँ अहूँ केँ देल जायत। पूरा-पूरी नाप, दबा-दबा कऽ, हिला-डोला कऽ आ उमड़ा-उमड़ा कऽ अहाँ केँ देल जायत। किएक तँ जाहि नाप सँ अहाँ नपैत छी, ताहि नाप सँ अहूँ केँ देल जायत।”
39 तकरबाद ओ हुनका सभ केँ ई दृष्‍टान्‍त दैत कहलथिन, “की एक आन्‍हर दोसर आन्‍हर केँ बाट देखा सकैत अछि? की एहि तरहेँ दूनू खधिया मे नहि खसत? 40 चेला अपना गुरु सँ पैघ नहि होइत अछि, मुदा जखन ओ पूर्ण शिक्षा प्राप्‍त करत तखन अपना गुरु जकाँ बनत।
41 “अहाँ अपन भायक आँखि मेहक काठक कुन्‍नी किएक देखैत छी? की अपना आँखि मेहक ढेंग नहि सुझाइत अछि? 42 अपना भाय केँ अहाँ कोना कहैत छी जे, ‘हौ भाइ, लाबह, हम तोरा आँखि मे सँ ओ कुन्‍नी निकालि दैत छिअह’, जखन कि अपना आँखि मेहक ढेंग नहि देखैत छी? हे पाखण्‍डी! पहिने अपना आँखि मेहक ढेंग निकालि लिअ, तखने अपन भायक आँखि मेहक कुन्‍नी निकालबाक लेल अहाँ ठीक सँ देखि सकब।
नीके गाछ मे नीक फल
(मत्ती 7.16-20; 12.33-35)
43 “नीक गाछ मे खराब फल नहि फड़ैत अछि, आ ने खराब गाछ मे नीक फल। 44 प्रत्‍येक गाछ ओकर अपन फल सँ चिन्‍हल जाइत अछि। लोक काँटक गाछ सँ अंजीर-फल नहि तोड़ैत अछि, आ ने काँटक झाड़ी सँ अंगूर। 45 नीक मनुष्‍य नीक वस्‍तु सँ भरल अपना हृदयक भण्‍डार मे सँ नीक वस्‍तु सभ निकालैत अछि, और अधलाह मनुष्‍य अपन अधलाह वस्‍तु सँ भरल भण्‍डार मे सँ अधलाह वस्‍तु सभ बाहर करैत अछि। कारण, जाहि बात सँ ओकर हृदय भरल छैक, सैह बात सभ ओकरा मुँह सँ बहराइत रहैत छैक।
दू तरहक न्‍यो
(मत्ती 7.24-27)
46 “हमरा ‘प्रभु, प्रभु’ किएक कहैत छी, जखन की हमर कहल नहि करैत छी? 47 आब हम अहाँ सभ केँ कहैत छी जे, जे केओ हमरा लग अबैत अछि और हमर बात सुनि कऽ ओकर पालन करैत अछि, से केहन अछि। 48 ओ ताहि आदमी सनक अछि जे घर बनयबाक समय मे गहींर तक खुनि कऽ पाथर पर न्‍यो रखलक। जखन बाढ़ि आयल और बाढ़िक रेत ओहि घर सँ टकरायल तँ ओकरा हिला नहि सकल, कारण ओ घर मजगूती सँ बनाओल गेल छल। 49 मुदा जे केओ हमर बात सुनैत अछि और ओकर पालन नहि करैत अछि, से ताहि आदमी जकाँ अछि जे बिनु न्‍यो रखनहि सोझे माटि पर घर बनौलक। ओहि घर सँ बाढ़िक पानि टकराइत देरी ओ घर खसि पड़ल आ पूरा नष्‍ट भऽ गेल।”