दईब रे ईंहंणे री ध्याड़
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1 हे प्रिय , एबा हाँऊं तमा बे दूजी पत्री लिखा, होर दुही में शुद्धी दिलाई करे थारे शुद्ध मना उभारा, 2 कि तमा तया गला ज़ोह पबित्र ज्योत्षी पहिले बोली दी साहा ,होर दईब होर उदारकर्ता की तेसा आज्ञा याद करा ज़ोह थारे प्रेरिता रे दुआरा दिंनी दी तिही । 3 पहिले यह ज़ाणा कि लास्टा ध्याड़ी में हासी ठठा कर्ण आल़े ईंहंणे ज़ोह आपणी ही अभिलाषा रे अनुसारी चलणे 4 होर बोलणाा ,“ तेऊरे ईंहंणे री प्रतिज्ञा कंईं नाठी ? किबेकि जेब्रा का बाब दादू सुते , सब कुछ तेढा ही साहा जेढा सृष्टि रे पहिले का तिही ?” 5 तया त यह ज़ाणी बुझी करे बिसरी कि दईब रे बचना रे दुआरा स्बर्ग प्राचीन काला का बिधमान साहा होर पृथ्बी भी पाणी मेंज़ा का बणी होर पाणी में स्थिर साहा , 6 एउ रे कारण तेऊ युगा रा संसारीा पाणी में डूबी करे नष्ट होऊ । 7 पर बर्तमान काला में स्बर्ग होर पृथ्बी तेहू बचना रे दुआरा एतकि तणी डाही कि जलाए लोढ़ी , होर यह भक्तिहीन मणशा रे न्याय होर नष्ट हूँणे री ध्याड़ी तणी एढ़े ही रहंणे । 8 हे प्रिय , यह गल त तमा का गोझी नांई रहे कि दईब रे अखे एक ध्याड़ हज़ार साला बराबर साहा ,होर हज़ार साला एकु ध्याड़ी बराबर साहा । 9 दईब आपणी प्रतिज्ञा रे बारे में देर नांई करदअ , जेढ़ी देर कुछ मणश समझा , पर थारे बारे में धीरज धरा , होर नांई चाँहंदअ कि कोई नष्ट हो ,पर सभी बे मन फरेउंणे रा मोका भेटे । 10 पर दईब री ध्याड़ चोरा रे बराबर ईंहंणी तेसा ध्याड़ी स्बर्ग बड़ेी हडहडाहटा रे शब्दा का नाहंदअ रहंणअं होर तत्ब बहू ही गर्म होई करे पिघल़ने (खुल़ने ) होर पृथ्बी होर तेता पेंधले काम ज़ल़ने । 11 ज़ेबा कि या बस्तु एसा रीति का खूल़न आल़ी साहा , तेबा तमा पबित्र चाल चलन होर भक्ति में केढ़े मणश होई लोढ़ी , 12 होर दईब री तेसा ध्याड़ी री बाट कासु रीति का ज़ोही लोढ़ी होर तेऊ रे छेकअ ईहंणे बे केढा यत्न करू लोढ़ी तिही ज़ासके कारण स्बर्ग आगि में खुल़ने ,होर स्बर्गे रे गण बहू ही तृप्त होई करे गल़ने । 13 पर तेऊ री प्रतीक्षा रे साबे हामे एकु नउंएँ स्बर्ग होर पृथ्बी री साहा हेरा ज़ासु में धार्मिकता बास करणा ।
बयाते होर तयार रहा
14 एतकि तणी दे प्रिय ,जेबा कि तमेे याह गला री साहा हेरा ,तेबा यत्न करा कि तमेे शान्ति संघा तेऊरे सामने निष्कलंक होर निर्दोष ठहरे , 15 होर म्हारे दईब रे धीरजा उद्धार समझा , जेढा म्हारे प्रिय भाई पौलुसे तेऊ ज्ञाना ते साबे ज़ोह तेऊ भेटा , तमा बे लिखुदा साहा । 16 तेढे ही तेऊ आपणी सारीी पत्री में भी तया गला री चर्चा करी दी साहा ,ज़ासु में कुछ गला एढी साहा ज़ास्का समझना कठण साहा होर अनपढ़ होर चंचल लोका तया रे अर्था भी पबित्र शास्त्रा री गला साही खिंची तानी करे आपणे ही नाशा रा कारण बणाउंदा । 17 इतकि तणी हे प्रिय , तमेे लोका पहिले का ही या गला ज़ाणी करे चुस्त रहा , ताकि अधर्मी रे बेहमा में फसी करे आपणी अथिरता कंईं हाथा का नांई खोए । 18 होर म्हारे दईब उदारकर्ता यीशु मसीहा रे अनुग्रह होर पछेणा में बढ़दे रहा । तेहू री महिमा एबा भी हो , होर जुगे-जुगे हूँदी रहे । आमीन ।