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1 तेँ अपना सभ बचपना वला बात छोड़ि मसीहक विषय मे जे शुरू वला शिक्षा अछि ताहि सँ आगाँ बढ़ि कऽ आब गहींर शिक्षा बुझनिहार बनी। अपना सभ आब मृत्‍युक दिस लऽ जाय वला कर्म सभक लेल पश्‍चात्ताप आ हृदय-परिवर्तन कयनाइ, परमेश्‍वर पर विश्‍वास कयनाइ, 2 बपतिस्‍मा सभक सम्‍बन्‍ध मे शिक्षा, माथ पर हाथ राखऽ वला विधि, मुइल सभक जीबि उठनाइ, और अन्‍तिम न्‍याय—ई सभ शुरू वला शिक्षा फेर नहि दोहराबी। 3 आ जँ परमेश्‍वर होमऽ देताह तँ अपना सभ एहि सँ आगाँ बढ़बे करब।
4 कारण, जे केओ एक बेर इजोत प्राप्‍त कयने अछि, स्‍वर्गीय वरदानक स्‍वाद पौने अछि, परमेश्‍वरक पवित्र आत्‍मा मे सहभागी बनल अछि, 5 परमेश्‍वरक वचन कतेक उत्तम और आबऽ वला राज्‍य कतेक सामर्थी अछि ताहि बात सभक अनुभव कयने अछि— 6 जँ एहन लोक अपन विश्‍वास छोड़ि दय तँ ओकरा फेर हृदय-परिवर्तनक बाट पर लौनाइ असम्‍भव अछि, किएक तँ एहन लोक अपने अहित करैत परमेश्‍वरक पुत्र केँ फेर क्रूस पर चढ़बैत अछि आ खुल्‍लमखुल्‍ला हुनकर अपमान करैत छनि।
7 जे जमीन बेर-बेर वर्षाक पानि सोखैत अछि आ जोताइ-बोआइ कयनिहार किसानक लेल नीक अन्‍नक उपजा दैत अछि से जमीन परमेश्‍वरक आशिष पबैत अछि। 8 मुदा जे जमीन काँट-कुश उपजबैत अछि से जमीन बेकार अछि। ओ सरापित होमऽ पर अछि और अन्‍त मे जराओल जायत।
9 यौ प्रिय मित्र लोकनि, हम सभ एहन बात सभ तँ कहलहुँ मुदा तैयो हमरा सभ केँ अहाँ सभक विषय मे एहि सँ नीक बात, अर्थात् उद्धार सँ मिलऽ वला बातक विश्‍वास अछि। 10 किएक तँ परमेश्‍वर अन्‍यायी नहि छथि जे ओ अहाँ सभक काज आ हुनका प्रति अहाँ सभक ओहि प्रेम केँ बिसरि जाथि, जे प्रेम अहाँ सभ हुनकर लोक सभक सेवा करैत देखौने छी, जे सेवा एखनो कऽ रहल छी। 11 हमरा सभक हार्दिक इच्‍छा अछि जे अहाँ सभ मे सँ प्रत्‍येक गोटे एहिना प्रयत्‍नशील रही जाहि सँ अहाँ सभ पूरा विश्‍वासक संग अन्‍त तक अपना आशा मे स्‍थिर रही। 12 आलसी नहि होउ, बल्‍कि ओहन लोक सभ जकाँ बनू जे सभ विश्‍वास आ धैर्य द्वारा ओहि बात सभक उत्तराधिकारी बनैत अछि जाहि बात सभक विषय मे परमेश्‍वर वचन देलनि।
परमेश्‍वरक अटल वचन—आशाक पक्‍का आधार
13 अब्राहमक उदाहरण लिअ—परमेश्‍वर अब्राहम केँ वचन दैत समय मे अपने नाम लऽ कऽ सपत खयलनि, कारण, हुनका सँ पैघ केओ नहि छल जकर नाम लऽ कऽ ओ सपत खइतथि। 14 ओ कहलथिन, “निश्‍चय हम तोरा आशिष देबह। आ तोरा वंश केँ बहुत बढ़यबह।”a 15 अब्राहम धैर्यपूर्बक प्रतीक्षा कयलनि आ ओ बात प्राप्‍त कयलनि जाहि सम्‍बन्‍ध मे परमेश्‍वर वचन देने छलाह।
16 लोक तँ अपना सँ पैघ आदमीक नाम लऽ कऽ सपत खाइत अछि। सपत द्वारा कोनो बात पकिया बनाओल जाइत अछि आ सभ विवाद समाप्‍त कयल जाइत अछि। 17 तेँ जखन परमेश्‍वर अपन वचनक उत्तराधिकारी सभक लेल ई बात आरो स्‍पष्‍ट करऽ चाहलनि जे हुनकर उद्देश्‍य बदलि नहि सकैत अछि तँ ओ सपतो खयलनि।
18 परमेश्‍वर दूटा अटल प्रमाण देलनि, वचन आ सपत, जाहि मे हुनका झुट्ठा भेनाइ असम्‍भव अछि। ओ ई एहि लेल कयलनि जाहि सँ अपना सभ केँ मजगूत प्रोत्‍साहन भेटय, अर्थात्‌, अपना सभ केँ जे सभ सामने मे राखल आशाक प्राप्‍ति करबाक लेल हुनका शरण मे दौड़ैत आयल छी। 19 जहिना एक लंगर नाव केँ पानि मे स्‍थिर रखैत अछि तहिना ई आशा अपना सभक आत्‍मा केँ सुरक्षित आ स्‍थिर रखैत अछि। ई आशा अपना सभ केँ “परदाक भीतर”, स्‍वर्गिक परमपवित्र स्‍थान मे लऽ जाइत अछि, 20 जतऽ यीशु अपना सभक लेल अपना सभ सँ पहिने प्रवेश कयने छथि। ओ मलकीसेदेकक अनुरूप अनन्‍त कालक लेल महापुरोहित बनि गेल छथि।