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आलोचनाक सम्बन्ध मे पौलुसक प्रत्युत्तर
1 हम पौलुस, जे किछु लोकक कथनक अनुसार अहाँ सभक सामने मे कायर छी मुदा अहाँ सभ सँ दूर रहला पर साहस देखबैत छी, से मसीहक नम्रता आ कोमलताक नाम पर अहाँ सभ सँ आग्रह करैत छी— 2 अहाँ सभ सँ ई विनती करैत छी जे जखन हम अहाँ सभ लग आबी तँ हमरा तेहन साहस नहि देखाबऽ पड़य जेहन हम तकरा सभक प्रति देखयबाक निश्चय कऽ लेने छी जे सभ हमरा सभक सम्बन्ध मे कहैत अछि जे, “ओ सभ सांसारिक विचारक अनुसार चलैत अछि।” 3 कारण, हम सभ संसार मे रहैत छी अवश्य, मुदा सांसारिक तरीका सँ युद्ध नहि लड़ैत छी। 4 किएक तँ हमरा सभक युद्धक हथियार सांसारिक नहि, बल्कि परमेश्वरक शक्तिशाली हथियार अछि जाहि द्वारा शक्ति-केन्द्र सभ केँ ध्वस्त कयल जाइत अछि। 5 हम सभ परमेश्वर सम्बन्धी सत्य ज्ञानक विरोध मे ठाढ़ होमऽ वला कल्पना सभ और प्रत्येक कुतर्क केँ नष्ट करैत छी आ प्रत्येक विचार केँ बन्दी बना कऽ मसीहक अधीनता मे लबैत छी। 6 अहाँ सभ जखन पूर्ण रूप सँ आज्ञाकारी होयब तखन हम सभ आज्ञा केँ तोड़नाइ वला प्रत्येक काज केँ दण्डित करबाक लेल तैयार रहब।
7 जे बात आँखिक सामने स्पष्ट अछि तकरा अहाँ सभ देखि लिअ। जँ केओ अपना सम्बन्ध मे निश्चिन्त अछि जे ओ मसीहक अछि तँ ओ एहि पर सेहो विचार करय जे जहिना ओ मसीहक अछि तहिना हमहूँ सभ मसीहक छी। 8 जँ हम प्रभु सँ भेटल अधिकार पर विशेष गर्व करबो करी, तँ हमरा एहि बात सँ कोनो लाज नहि होयत; ई अधिकार अहाँ सभक नोकसानक लेल नहि, बल्कि अहाँ सभक आत्मिक निर्माणक लेल अछि। 9 अहाँ सभ ई नहि बुझू जे हम अपन पत्र सभक द्वारा अहाँ सभ केँ डेराबऽ चाहैत छी। 10 किएक तँ किछु लोक सभक कथन अछि जे, “ओकर पत्र सभ गम्भीर आ प्रभावशाली तँ होइत अछि, मुदा जखन ओ स्वयं उपस्थित होइत अछि तँ ओ कमजोर लगैत अछि आ ओकर बजबाक तरीका सँ कोनो प्रभाव नहि पड़ैत अछि।” 11 एहन लोक सभ ई बुझओ जे हम सभ अपन अनुपस्थिति मे पत्र सभक माध्यम सँ जे कहैत छी, उपस्थित भेला पर सैह करबो करब।
अपन सेवा-काजक सम्बन्ध मे पौलुसक सिद्धान्त
12 जे लोक सभ अपन प्रशंसा करैत अछि, हम सभ अपना केँ तकरा सभ जकाँ मानबाक आ तकरा सभ सँ अपन तुलना करबाक साहस नहि करैत छी। ओ सभ अपने नाप सँ अपना केँ नपैत अछि आ अपने सँ अपना केँ तुलना करैत अछि। केहन मूर्खता वला बात! 13 मुदा हम सभ जे छी, से उचित सीमा केँ नाँघि कऽ गर्व नहि करब। परमेश्वर हमरा सभक लेल जे क्षेत्र निर्धारित कयने छथि से अहूँ सभ तक पहुँचैत अछि आ हम सभ तकरा भीतर मे रहि कऽ गर्व करब। 14 हम सभ अपन क्षेत्रक सीमाक उल्लंघन नहि करैत छी। जँ अहाँ सभ लग नहि पहुँचल रहितहुँ तँ हमरा सभ सँ सैह होइत, मुदा हम सभ मसीहक शुभ समाचार प्रचार करैत अहाँ सभ लग पहुँचल छी। 15 हम सभ अपन सीमाक उल्लंघन करैत दोसराक परिश्रम पर गर्व सेहो नहि करैत छी, बल्कि हमरा सभक आशा अछि जे जहिना-जहिना अहाँ सभक विश्वास बढ़ैत जायत, तहिना-तहिना हमरा सभक कार्यक्षेत्र सेहो अहाँ सभक सहायता सँ विस्तृत होइत जायत, 16 जाहि सँ हम सभ अहाँ सभ सँ आगाँक इलाका मे सुसमाचारक प्रचार कऽ सकी आ अनकर क्षेत्रक सीमाक भीतर भेल काज पर गर्व नहि करी। 17 बल्कि जेना कि धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, “जे केओ घमण्ड करय से प्रभु पर घमण्ड करय।”a 18 किएक तँ जे अपन प्रशंसा स्वयं करैत अछि से नहि, बल्कि जकर प्रशंसा प्रभु करैत छथिन, वैह योग्य ठहराओल जाइत अछि।