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दुर्बलता मे परमेश्वरक सामर्थ्य
1 एहि लेल, परमेश्वरक दया सँ हमरा सभ केँ ई सेवा-काज भेटबाक कारणेँ हम सभ कखनो साहस नहि छोड़ैत छी। 2 हम सभ ठोस निर्णय लेने छी जे कोनो नीचता वला गुप्त काज नहि करब। हम सभ ने तँ छल-कपट करैत छी आ ने परमेश्वरक वचन मे हेर-फेर करैत छी, बल्कि हम सभ स्पष्ट रूप सँ सत्य प्रस्तुत कऽ कऽ प्रचार करैत छी। एहि सँ प्रत्येक मनुष्य देखि सकैत अछि जे हम सभ परमेश्वर केँ उपस्थित मानि शुद्ध मोन सँ सत्यक प्रचार करैत छी। 3 जँ हमरा सभक सुसमाचार पर परदा पड़ल अछिओ तँ ई परदा तकरे सभक लेल पड़ल अछि जे सभ विनाशक मार्ग पर चलि रहल अछि। 4 शैतान, जे एहि संसारक ईश्वर अछि, से ओहि अविश्वासी सभक बुद्धि केँ आन्हर बना देने छैक जाहि सँ ओ सभ परमेश्वरक प्रतिरूप, जे मसीह छथि, तिनकर महिमाक इजोत जे सुसमाचार द्वारा प्रगट कयल गेल अछि, से नहि देखय। 5 कारण, हम सभ अपन नहि, बल्कि यीशु मसीहक प्रचार करैत छी जे ओ प्रभु छथि। हम सभ यीशुक सेवा मे अहाँ सभक सेवक छी, 6 किएक तँ जे परमेश्वर ई कहलनि जे, “अन्हार मे सँ इजोत चमकओ,”a से हमरा सभक मोन मे इजोत चमकौने छथि जाहि सँ हम सभ परमेश्वरक ओ महिमा जानि जाइ जे मसीहक मुँह पर चमकैत छनि।
7 मुदा ई अमूल्य धन माटिक बर्तन सभ मे, अर्थात् हमरा सभ मे, राखल अछि जाहि सँ स्पष्ट होअय जे ई सर्वश्रेष्ठ सामर्थ्य हमरा सभक अपन नहि, बल्कि परमेश्वरक छनि। 8 हमरा सभ पर चारू दिस सँ कष्ट अबैत अछि मुदा हम सभ पिचाइत नहि छी, निरुपाय भऽ जाइत छी मुदा निराश नहि छी। 9 अत्याचार सभ सँ पीड़ित होइत रहैत छी मुदा अपना केँ परमेश्वर द्वारा त्यागल नहि बुझैत छी। खसाओल जाइत छी मुदा नष्ट नहि भऽ जाइत छी। 10 हम सभ सदिखन सभ ठाम अपना शरीर मे यीशुक मृत्यु वला दुःख-भोगक अनुभव करैत छी जाहि सँ यीशुक जीवन सेहो हमरा सभक शरीर मे प्रत्यक्ष होअय, 11 किएक तँ हम सभ जीवित रहितो यीशुक कारणेँ सदिखन मृत्युक हाथ मे सौंपल जाइत छी जाहि सँ हमरा सभक नाशवान शरीर मे यीशुक जीवन प्रगट होअय। 12 एहि तरहेँ हम सभ सदा मृत्युक सामना करैत छी, मुदा तकर परिणाम भेल अहाँ सभक लेल जीवन।
13 धर्मशास्त्र मे केओ कहने अछि, “हम विश्वास कयलहुँ, एहि लेल हम बजलहुँ।”b विश्वासक वैह आत्मा हमरो सभ मे होयबाक कारणेँ हमहूँ सभ विश्वास करैत छी आ तेँ बजैत छी, 14 कारण, हम सभ ई जनैत छी जे, ओ जे प्रभु यीशु केँ मृत्यु सँ जिऔलनि, वैह हमरो सभ केँ यीशुक संग जिऔताह, आ अहाँ सभक संग हमरो सभ केँ अपना सम्मुख उपस्थित करताह। 15 ई सभ किछु अहाँ सभक हितक लेल भऽ रहल अछि जाहि सँ आरो-आरो लोकक बीच परमेश्वरक कृपा बढ़ल जयबाक कारणेँ, परमेश्वरक स्तुति मे धन्यवादक प्रार्थना अधिक सँ अधिक बढ़ैत जाय।
16 यैह कारण अछि जे हम सभ साहस नहि छोड़ैत छी। ओना तँ हमरा सभक बाहरी शारीरिक बल घटल जा रहल अछि तैयो हमरा सभक भितरी आत्मिक बल दिन प्रति दिन नव भेल जा रहल अछि। 17 किएक तँ हमरा सभक पल भरिक ई हल्लुक कष्ट हमरा सभक लेल अतुल्य और अनन्त कालीन महिमा तैयार कऽ रहल अछि। 18 तेँ हमरा सभक नजरि ओहि वस्तु सभ पर टिकल नहि अछि जे देखाइ दैत अछि, बल्कि ओहि वस्तु सभ पर जे आँखि सँ नहि देखल जा सकैत अछि, किएक तँ देखाइ पड़ऽ वला वस्तु सभ तँ कनेके काल टिकैत अछि, मुदा जे वस्तु सभ देखल नहि जा सकैत अछि, से अनन्त काल तक बनल रहैत अछि।