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प्रेम—सभ सँ उत्तम तरीका
1 जँ हम मनुष्य सभक आ स्वर्गदूत सभक भाषा सभ बाजी मुदा हम प्रेम नहि करी तँ हम टनटन करऽ वला घण्टा वा झनझन करऽ वला झालि मात्र छी। 2 जँ परमेश्वर सँ सम्बाद पयबाक और सुनयबाक वरदान हमरा भेटल होअय, जँ सभ रहस्य आ समस्त ज्ञान केँ जानि लेने होइ, आ हमर विश्वास एतेक परिपूर्ण होअय जे पहाड़ सभ केँ सेहो ओकर स्थान सँ हटा सकी, मुदा हम प्रेम नहि करी तँ हम किछु नहि छी। 3 जँ हम अपन सम्पूर्ण सम्पत्ति बाँटि कऽ दान कऽ दी आ अपन शरीर भस्म होयबाक लेल अर्पित करी, मुदा हम प्रेम नहि करी तँ हमरा कोनो लाभ नहि अछि।
4 प्रेम सहनशील आ दयालु होइत अछि। प्रेम डाह नहि करैत अछि, प्रेम अपन बड़ाइ नहि करैत अछि आ ने घमण्ड करैत अछि। 5 प्रेम अभद्र व्यवहार नहि करैत अछि, ओ स्वार्थी नहि अछि, जल्दी सँ खौंझाइत नहि अछि आ ने अपराधक हिसाब रखैत अछि। 6 प्रेम अधर्म सँ प्रसन्न नहि होइत अछि, बल्कि सत्य सँ आनन्दित होइत अछि। 7 प्रेम सभ बात सहन करैत अछि, सभ स्थिति मे विश्वास रखैत अछि, सभ स्थिति मे आशा रखैत अछि आ सभ स्थिति मे लगनशील रहैत अछि।
8 प्रेमक अन्त कहियो नहि होयत।a परमेश्वरक दिस सँ सम्बाद पौनाइ समाप्त भऽ जायत, अनजान भाषा सभ बजनाइ बन्द भऽ जायत आ ज्ञान लुप्त भऽ जायत। 9 किएक तँ अपना सभक ज्ञान अपूर्ण अछि आ परमेश्वर सँ सम्बाद पौनाइ आ सुनौनाइ अपूर्ण अछि। 10 मुदा जखन पूर्णता आबि जायत तँ जे अपूर्ण अछि से लुप्त भऽ जायत।
11 जखन हम बच्चा छलहुँ तँ बच्चा जकाँ बजैत छलहुँ, बच्चा जकाँ सोचैत छलहुँ आ बच्चा जकाँ विचार करैत छलहुँ। मुदा पैघ भऽ गेला पर बचकानी बात सभ छोड़ि देलहुँ। 12 तहिना एखन अपना सभ केँ अएना मे धोनाह सन देखाइ दैत अछि, मुदा तखन प्रत्यक्ष देखब। एखन हमर ज्ञान अपूर्ण अछि, मुदा तखन ओही तरहेँ पूर्ण रूप सँ जानब जाहि तरहेँ परमेश्वर पूर्ण रूप सँ हमरा एखनो जनैत छथि।
13 आब विश्वास, आशा आ प्रेम, ई तीनू टिकैत अछि मुदा सभ सँ श्रेष्ठ अछि प्रेम।