6
दान
1 “होसियार रहू, लोक केँ देखयबाक लेल अपन ‘धर्म-कर्म’ नहि करू, नहि तँ अहाँ केँ अपन पिता सँ, जे स्‍वर्ग मे छथि, कोनो फल नहि भेटत।
2 “अहाँ जखन गरीब सभ केँ दान दैत छी तखन तकर ढोल नहि पिटू, जेना पाखण्‍डी लोक सभाघर मे और रस्‍ता सभ मे करैत रहैत अछि, जाहि सँ लोक ओकर प्रशंसा करैक। हम अहाँ सभ केँ सत्‍य कहैत छी, लोकक प्रशंसा पाबि ओ सभ ओहि सँ बेसी कोनो इनामक बाट बेकार ताकत।
3-4 “मुदा अहाँ जखन दान करी तखन अहाँक ई काज एतेक गुप्‍त होअय जे अहाँक बामा हाथ सेहो नहि जानय जे अहाँक दहिना हाथ की कऽ रहल अछि। तखन अहाँक पिता जे गुप्‍त काज केँ सेहो देखैत छथि, से अहाँ केँ तकर प्रतिफल देताह।
प्रार्थनाक विषय मे शिक्षा
(लूका 11.2-4)
5 “जखन परमेश्‍वर सँ प्रार्थना करी, तँ पाखण्‍डी जकाँ नहि बनू, किएक तँ ओ सभ सभाघर सभ मे आ चौक सभ पर ठाढ़ भऽ कऽ प्रार्थना कयनाइ बहुत पसन्‍द करैत अछि, जाहि सँ लोक ओकरा सभ केँ देखैक। हम अहाँ सभ केँ सत्‍य कहैत छी जे, लोक ओकरा सभ केँ देखलक, ओहि सँ बेसी ओ सभ कोनो इनामक बाट बेकार ताकत।
6 “मुदा अहाँ जखन प्रार्थना करी, तँ अपना कोठरी मे जाउ, केबाड़ बन्‍द करू आ अपना पिता, जिनका केओ नहि देखि सकैत छनि, तिनका सँ प्रार्थना करू। अहाँक पिता जे गुप्‍त काज सेहो देखैत छथि, से अहाँ केँ तकर प्रतिफल देताह। 7 प्रार्थना करैत अहाँ सभ ओहि जाति सभक लोक जकाँ जे सभ जीवित परमेश्‍वर केँ नहि चिन्‍हैत अछि रट लगा कऽ बात नहि दोहरबैत रहू। ओ सभ तँ सोचैत अछि जे बहुत बजला सँ ओकर प्रार्थना सुनल जयतैक। 8 अहाँ सभ ओकरा सभ जकाँ नहि बनू। अहाँ सभक पिता तँ अहाँ सभक मँगनाइ सँ पहिनहि बुझैत रहैत छथि जे अहाँ सभ केँ कोन वस्‍तुक आवश्‍यकता अछि। 9 तेँ एहि तरहेँ प्रार्थना करू—
‘हे हमर सभक पिता,
अहाँ जे स्‍वर्ग मे विराजमान छी,
अहाँक नाम पवित्र मानल जाय,
10 अहाँक राज्‍य आबय,
अहाँक इच्‍छा जहिना स्‍वर्ग मे पूरा होइत अछि,
तहिना पृथ्‍वी पर सेहो पूरा होअय।
11 हमरा सभ केँ आइ भोजन दिअ,
जे दिन प्रति दिन हमरा सभक लेल आवश्‍यक अछि।
12 हमर सभक अपराध क्षमा करू,
जहिना हमहूँ सभ अपन अपराधी सभ केँ क्षमा कयने छिऐक।
13 हमरा सभ केँ पाप मे फँसाबऽ वला बात सँ दूर राखू,
और दुष्‍ट सँ हमरा सभक रक्षा करू।
[किएक तँ राज्‍य, शक्‍ति आ महिमा युगानुयुग अहींक अछि, आमीन।]a
14 अहाँ सभ जँ लोकक अपराध क्षमा करब तँ अहाँ सभक पिता जे स्‍वर्ग मे छथि सेहो अहूँ सभक अपराध क्षमा करताह। 15 मुदा अहाँ सभ जँ लोकक अपराध क्षमा नहि करबैक, तँ अहाँ सभक पिता सेहो अहाँ सभक अपराध क्षमा नहि करताह।
उपास
16 “अहाँ सभ जखन उपास करी तखन पाखण्‍डी सभ जकाँ मुँह लटकौने नहि रहू। कारण, ओ सभ अपन मुँह म्‍लान कयने रहैत अछि जाहि सँ लोक सभ बुझैक जे ओ उपास कयने अछि। हम अहाँ सभ केँ सत्‍य कहैत छी, लोक बुझलक, ओहि सँ बेसी ओ सभ कोनो इनामक बाट बेकार ताकत। 17 मुदा अहाँ जखन उपास करी तँ तेल-कुड़ लिअ आ अपन मुँह-हाथ धोउ, 18 जाहि सँ लोक नहि बुझय जे अहाँ उपास कयने छी, बल्‍कि मात्र अहाँक पिता, जिनका केओ नहि देखि सकैत छनि, से बुझथि। एहि सँ अहाँक पिता जे गुप्‍त काज केँ सेहो देखैत छथि, से अहाँ केँ प्रतिफल देताह।
असली धन
(लूका 12.33-34; 11.34-36; 16.13)
19 “पृथ्‍वी पर अपना लेल धन जमा नहि करू जतऽ कीड़ा आ बीझ ओकरा नष्‍ट कऽ दैत अछि, और चोर सेन्‍ह काटि कऽ ओकर चोरी कऽ लैत अछि। 20 बल्‍कि अपना लेल स्‍वर्ग मे धन जमा करू, जतऽ ने कीड़ा आ ने बीझ ओकरा नष्‍ट करैत अछि, आ ने चोर सेन्‍ह काटि कऽ ओकर चोरी करैत अछि। 21 कारण, जतऽ अहाँक धन अछि ततहि अहाँक मोनो लागल रहत।
22 “शरीरक डिबिया आँखि अछि! जँ अहाँक आँखि ठीक अछि तँ अहाँक सम्‍पूर्ण शरीर इजोत मे रहत। 23 मुदा जँ अहाँक आँखि खराब भऽ जाय तँ अहाँक सम्‍पूर्ण शरीर अन्‍हार मे भऽ जायत, आ जँ अहाँक भितरी प्रकाश अन्‍हार बनि जाय तँ ई अन्‍हार कतेक भयंकर होयत!
24 “कोनो खबास दूटा मालिकक सेवा एक संग नहि कऽ सकैत अछि। कारण, ओ एकटा सँ घृणा करत आ दोसर सँ प्रेम, अथवा पहिल केँ खूब मानत और दोसर केँ तुच्‍छ बुझत। अहाँ सभ परमेश्‍वर आ धन-सम्‍पत्ति दूनूक सेवा नहि कऽ सकैत छी।
चिन्‍ता सँ मुक्‍ति
(लूका 12.22-31)
25 “एहि लेल हम अहाँ सभ केँ कहैत छी, अपना प्राणक लेल चिन्‍ता नहि करू जे हम की खायब वा की पीब, आ ने शरीरक लेल चिन्‍ता करू जे की पहिरब। की भोजन सँ प्राण, आ वस्‍त्र सँ शरीर बेसी मूल्‍यवान नहि अछि? 26 आकाशक चिड़ै सभ केँ देखू—ओ सभ ने बाउग करैत अछि, ने कटनी करैत अछि आ ने कोठी मे अन्‍न रखैत अछि, मुदा तैयो अहाँ सभक पिता जे स्‍वर्ग मे छथि से ओकर सभक पालन करैत छथिन। की अहाँ सभ चिड़ै सभ सँ बहुत मूल्‍यवान नहि छी? 27 चिन्‍ता कऽ कऽ अहाँ सभ मे सँ के अपना उमेर केँ एको घड़ी बढ़ा सकैत छी?b
28 “वस्‍त्रक लेल अहाँ चिन्‍ता किएक करैत छी? जंगलक फूल सभ केँ देखू जे ओ सभ कोन तरहेँ फुलाइत अछि। ओ सभ ने खटैत अछि, आ ने चर्खा कटैत अछि। 29 हम अहाँ सभ केँ कहैत छी जे, राजा सुलेमान सेहो अपन राजसी वस्‍त्र पहिरि कऽ एहि फूल सन सुन्‍दर नहि लगैत छलाह। 30 जँ परमेश्‍वर मैदानक घास, जे आइ अछि आ काल्‍हि आगि मे जराओल जायत, तकरा एहि तरहेँ हरियरी सँ भरल रखैत छथि, तँ ओ अहाँ सभ केँ आओर किएक नहि पहिरौताह-ओढ़ौताह? अहाँ सभ केँ कतेक कम विश्‍वास अछि!
31 “एहि लेल चिन्‍ता नहि करू जे हम सभ की खायब, की पीब वा की पहिरब। 32 कारण, एहि सभ बातक पाछाँ तँ परमेश्‍वर केँ नहि चिन्‍हऽ वला जातिक लोक सभ पड़ल रहैत अछि। अहाँ सभक पिता जे स्‍वर्ग मे छथि से जनैत छथि जे अहाँ सभ केँ एहि बात सभक आवश्‍यकता अछि। 33 बल्‍कि सभ सँ पहिने परमेश्‍वरक राज्‍य पर, आ परमेश्‍वर जाहि प्रकारक धार्मिकता अहाँ सँ चाहैत छथि, ताहि पर मोन लगाउ, तँ ई सभ वस्‍तु सेहो अहाँ केँ देल जायत।
34 “तेँ काल्‍हि की होयत तकर चिन्‍ता नहि करू, किएक तँ काल्‍हि अपन चिन्‍ता अपने कऽ लेत। आजुक लेल तँ अजुके दुःख बहुत अछि।