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1 प्रभु येशु ने यह भी कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ : यहां कुछ व्यक्ति खड़े हैं, वे जब तक परमात्मा के धर्म-राज्य को शक्ति सहित आया हुआ न देख लेंगे, तब तक मृत्यु का स्वाद नहीं चखेंगे ।”
दिव्य-रूपान्तर
2 छः दिन बाद प्रभु येशु ने पतरस, जयकब और योहन को अपने साथ लिया और उन्हें अलग एक ऊंचे पहाड़ पर एकान्त में ले गए । वहां उनके सामने प्रभु येशु का रूपांतरण हो गया । 3 प्रभु येशु के कपड़े बहुत उज्ज्वल हो जगमगाने लगे-इतने उज्ज्वल कि पृथ्वी पर कोई धोबी नहीं कर सकता । 4 वहां शिष्यों को धर्मगुरु मोशे और ईश-प्रवक्ता एलियाहa धर्मगुरु मोशे और ईश-प्रवक्ता एलियाह धर्मगुरु मोशे (1500 ई०पु०) और ईश-प्रवक्ता एलिया (800 ई०पु०) यहूदी लोगों के सबसे प्रसिद्ध ईश-प्रवक्ता थे । दिखाई दिए । वे प्रभु येशु से बातें कर रहे थे ।
5 तब पतरस बोल उठा और उसने प्रभु येशु से कहा “गुरुजी, कितनी अच्छी बात है कि हम यहां हैं । आइए, हम तीन मण्डप बनाएं, एक आपके लिए, एक धर्मगुरु मोशे के लिए और एक एलियाह के लिए ।” 6 पतरस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे : क्योंकि वे सब बहुत डर गए थे ।
7 तब एक बादल ने उन्हें ढक लिया और बादल में से यह आवाज़ आई, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, इसकी बात सुनो ।” 8 शिष्यों ने जब एकाएक चारों ओर नज़रें दौड़ाई तो प्रभु येशु के अलावा और किसी को न देखा ।
9 पहाड़ से उतरते समय प्रभु येशु ने आदेश दिया, “जब तक तेजस्वी मानव-पुत्र मरे हुओ में से जीवित न हो उठे, तब तक यह जो तुम ने देखा है, किसी को न बताना ।” 10 इस बात को लेकर वे आपस में विचार करने लगे कि “मृतकों में से जीवित होने” का क्या अर्थ है ।
11 उन्होंने प्रभु येशु से पूछा “शास्त्री क्यों कहते हैं कि पहले ईश-प्रवक्ता एलियाह का आना अनिवार्य है?”
12 प्रभु येशु ने उत्तर दिया “ठीक है, एलियाह पहले आकर सब कुछ सुधारेंगे, परन्तु तेजस्वी मानव पुत्र के विषय में ऐसा लेख क्यों है कि ‘वह बहुत दुःख उठाएगा और तुच्छ समझा जाएगा?’ यशायाह 53 । 13 मैं तुमसे सच कहता हूँ, एलियाह तो आ चुके हैं और जैसा कि उनके बारे में पवित्र शास्त्र का लेख है, “लोगों ने उनके साथ मनमाना व्यवहार किया ।”
अशुद्ध आत्मा से जकड़े बालक को स्वस्थ करना
14 जब गुरु येशु और उनके तीनों शिष्य अन्य शिष्यों के पास आए, तब देखा कि शिष्यों के चारों ओर भीड़ लगी है और शास्त्री उनसे विवाद कर रहे हैं । 15 प्रभु येशु को देखते ही भीड़ के सब लोग हैरान हुए और दौड़कर उन्हें नमस्कार करने लगे ।
16 प्रभु येशु ने पूछा, “तुम इन के साथ क्या विवाद कर रहे हो?”
17 भीड़ में से एक मनुष्य ने उत्तर दिया, “गुरुजी, मैं आपके शिष्यों के पास अपने पुत्र को लाया जिसमें दुष्ट आत्मा का वास है जिसने गूंगा बना रखा है । 18 जहां कहीं वह उसे पकड़ती है, पटक देती है । वह मुंह में झाग भर लाता, दांत पीसने लगता और अकड़ जाता है । आपके शिष्यों से मैंने उसे निकालने को कहा, परन्तु वे उसे न निकाल सके ।”
19 प्रभु येशु ने कहा, “ओ अविश्वासी पीढ़ी, कब तक मैं तुम्हारे साथ रहूँगा? कब तक मैं तुम्हारे अविश्वास को सहन करूंगा? उसे मेरे पास लाओ ।”
20 लोग लड़के को प्रभु येशु के पास लाए । प्रभु येशु को देखते ही गूंगी आत्मा ने लड़के को मरोड़ा और लड़का भूमि पर गिर पड़ा और मुंह से झाग निकालते हुए लोटने लगा ।
21 प्रभु येशु ने उसके पिता से पूछा, “इसकी ऐसी दशा कब से है?”
उसने उत्तर दिया, “बचपन से
22 और इसे नष्ट करने के लिए गूंगी आत्मा ने कई बार इसे आग में और कभी पानी में गिराया । यदि आप कर सकें तो दया कर हमारी सहायता कीजिए ।”
23 प्रभु येशु ने उससे कहा, “यदि आप [विश्वास] कर सकें? विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ सम्भव है ।”
24 इस पर लड़के का पिता पुकार उठा, “मैं विश्वास करता हूँ। मेरे अविश्वास को दूर करने में मेरी सहायता कीजिए ।”
25 प्रभु येशु ने देखा कि भीड़ उमड़ती चली आ रही है तो अशुद्ध आत्मा को डांट कर कहा, “ऐ गूंगी और बहरी आत्मा, मैं तुझे आज्ञा देता हूँ कि इसमें से निकल और फिर कभी इसमें प्रवेश मत करना ।”
26 गूंगी आत्मा [लड़के को] बहुत मरोड़ कर चिल्लाती हुई उसमें से निकल गई । लड़का निर्जीव-सा हो गया, यहां तक कि अनेक लोग कहने लगे कि वह मर गया । 27 परन्तु प्रभु येशु ने उसे हाथ पकड़ कर उठाया, और वह खड़ा हो गया ।
अपनी मृत्यु के बारे में प्रभु येशु की दूसरी भविष्यवाणी
28 जब प्रभु येशु घर आए तब शिष्यों ने एकान्त में उनसे पूछा, “हम उसे क्यों नहीं निकाल सके?”
29 उन्होंने उत्तर दिया, j “इस तरह की आत्माएं प्रार्थना [और उपवास] के बिना नहीं निकल सकतीं ।”
30 गुरु येशु और उनके शिष्य वहां से चले गए । वे गलील प्रदेश से होकर जा रहे थे,और वह नहीं चाहते थे कि किसी को उनका पता लगे; 31 क्योंकि वह अपने शिष्यों को शिक्षा देने में लगे हुए थे । उनका कहना था, “तेजस्वी मानव-पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाने को है । वे उसे मार डालेंगे, परन्तु मरने के तीन दिन बाद वह फिर जीवित हो उठेगा ।” 32 इस बात का अर्थ शिष्यों की समझ में न आया, पर वे उनसे अर्थ पूछने से डरते थे ।
विनम्र बनो
33 गुरु येशु और उनके शिष्य कफरनहूम में आए । घर में प्रवेश करने पर गुरु येशु ने शिष्यों से पूछा, “मार्ग में तुम क्या बहस कर रहे थे?” 34 वे चुप रहे, क्योंकि मार्ग में उन्होंने बहस की थी कि उनमें सबसे बड़ा शिष्य कौन है । 35 बैठने के बाद गुरु येशु ने “बारह” को अपने पास बुलाया और कहा, “यदि कोई प्रथम होना चाहता है तो उसे चाहिए कि वह पहले सबसे अन्तिम हो और सबका सेवक बने ।”
36 तब उन्होंने एक बालक को लेकर उनके बीच खड़ा किया और उसे गोद में लेकर बोले, 37 “जो कोई मेरे नाम से ऐसे बालक को स्वीकार करता है, तो वह मुझे स्वीकार करता है; और जो मुझे स्वीकार करता है, वह मुझे नहीं परन्तु उसे स्वीकार करता है जिसने मुझे भेजा है ।”
उदार विचार
38 गुरु येशु के शिष्य योहन ने कहा, “गुरुजी, हमने एक मनुष्य को आपके नाम से दुष्ट आत्मा निकालते हुए देखा, तो हमने उसे रोकने की कोशिश की; क्योंकि वह हमारे साथ आपका अनुसरण नहीं करता है ।”
39 प्रभु येशु बोले, “उसे मत रोको; क्योंकि ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो मेरे नाम से चमत्कारी काम करे और तुरन्त ही मुझे बुरा कह सके । 40 जो हमारे विरोध में नहीं, वह हमारे पक्ष में है । 41 यदि कोई मेरे नाम से, इसलिए कि तुम मसीहा के हो, तुम्हें एक गिलास पानी पिलाए तो मैं तुमसे सच कहता हूँ कि वह अपना इनाम कभी न खोएगा ।”
दूसरों को फंसाने वालों के लिए चेतावनी
42 “जो कोई इन छोटों में से, जो मुझ पर विश्वास करते हैं, एक को भी पाप के जाल में फंसाए, उसके लिए अच्छा है कि उसके गले में चक्की का एक बड़ा पाट बांधा जाए और वह झील में फ़ेंक दिया जाए । 43 यदि तुम्हारा हाथ तुम्हें पाप में फंसाए, तो उसे काट डालो । लूला होकर परमधाम के जीवन में प्रवेश करना इससे कहीं अच्छा है कि दो हाथ रहते हुए तुम नरक में, न बुझने वाली आग में, डाले जाओ [जहां कीड़ा जो उन्हें खाता है वे कभी नहीं मरेगा और ये आग जो उन्हें जलाती है कभी भुझेगी नहीं] ।” यशायाह 66:24 44-45 यदि तुम्हारा पैर तुम्हें पाप में फंसाए तो उसे काट डालो । लंगड़े होकर परमधाम के जीवन में प्रवेश करना इससे कहीं अच्छा है कि दो पैर रहते तुम नरक में डाले जाओ [जहां कीड़ा जो उन्हें खाता है वे कभी नहीं मरेगा और ये आग जो उन्हें जलाती है कभी भुझेगी नहीं ] । 46-47 और यदि तुम्हारी आंख तुम्हें पाप में फंसाए तो उसे निकाल डालो । काने होकर परमात्मा के धर्म-राज्य में प्रवेश करना इससे कहीं अच्छा है कि दो आंखें होते हुए तुम नरक में डाले जाओ, 48 जहां कीड़ा जो उन्हें खाता है वे कभी नहीं मरेगा और ये आग जो उन्हें जलाती है कभी भुझेगी नहीं है ।”
49 “हर एक व्यक्ति आग द्वारा नमकीन किया जाएगा [और हर एक बलि नमक द्वारा नमकीन की जायेगी] 50 नमक अच्छा है, पर यदि नमक अपना स्वाद खो बैठे तो उसे किस चीज़ से नमकीन करोगे? अपने में नमक रखो और एक-दूसरे के साथ शान्ति से रहो ।”