a1:1 [परमात्मा-पुत्र] इस्राएल के सब लोगों और उनके ईश्वर के साथ नज़दीक सम्बन्धों के सन्दर्भ में प्रयोग “परमात्मा-पुत्र” किया जाता था (होशे 11:1) । इसके साथ ही, यह विशेष सन्दर्भ इस्राएल के राजा के लिए जो परमात्मा का प्रतिनिधित्व करते थे (जैसे राजा दाविद और सालोमन), उन्हें “परमात्मा-पुत्र” भी कहा जाता था । यहाँ पर प्रभु येशु का प्रकटीकरण एक परमात्मा के सम्पूर्ण और अनोखे पुत्र, इस्राएल के राजा, और राजाओं के राजा के रूप में हुआ है ।
b1:1 मुक्तिदाता येशु के शुभ संदेश यह “शुभ संदेश” परमात्मा के आने वाले शासन का संदेश; परमेश्वर के शुभ संदेश की भविष्यवाणी बहुत साल पहले कर दी गई थी (यशायाह 40:9, 52:7) और अब दुनिया में प्रभु येशु द्वारा इसकी घोषणा की गई है । उन्होंने पाप, बीमारी, प्रकृति, और दुष्ट आत्माओं के ऊपर अपनी राजसी शक्ति को दिखाया, परन्तु उन्होंने नम्रता से कष्टों को सहा जिससे पूरे संसार को मुक्ति प्राप्त हो ।
c1:2 परमेश्वर के प्रवक्ता (“ईश-प्रवक्ता,” नबी” और “भविष्यवक्ता” के नाम से भी जाने जाते है) परमेश्वर के प्रवक्ता के शुद्ध सन्देश को (बिना अपने शब्दों को मिलाए) सीधे लोगों तक पहुंचाते है । यहूदी पवित्र शास्त्र में, यशायाह जैसे, 48 पुरुष ईश-प्रवक्ताओं के सन्देश शामिल किए गए है और 7 महिला ईश-प्रवक्ताओं के सन्देश भी शामिल किए गए हैं । उस समय के लोगों के लिए ही केवल उनके सन्देश नहीं थे, परन्तु भविष्य के लिए भी थे; विशेष तौर पर प्रभु येशु के बारे में बताते है — जैसे इस सन्देश में ईश-प्रवक्ता यशायाह (जो प्रभु येशु से कई सौ साल पहले थे) दीक्षा गुरु योहन ने प्रभु येशु के आने की भविष्यवाणी की ।
1:3 यशायाह 40:3, मलाकी 3:1
d1:4 प्रभु येशु और गुरु योहन दोनों ने अपने प्रवचन देते समय लोगों को जीवन की दिशा और मन बदलने के लिए कहा । लोग स्वार्थ और पाप की दिशा में चलते हैं और उनका मन भी वही लगा रहता है । परन्तु प्रभु येशु ने अपने प्रवचनों और अपने जीवन के द्वारा लोगों को अवसर दिया कि वे परमात्मा की ओर मुड़े । परन्तु, इसका अर्थ संन्यास लेना नहीं है बल्कि संसार में रहते हुए पूरे रूप से परमात्मा की कृपा प्राप्त कर उसकी आज्ञा पर चलना है ।
e1:5 प्रभु येशु के काल में इस्राएल देश के तीन राज्यों में से एक राज्य था । यहूदा प्रदेश वह है जहाँ प्रभु येशु का जन्म हुआ (बेथलेहेम नामक एक गाँव), और यही पर प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित था (राजधानी यरूशलेम में) ।
f1:7 यहूदी पवित्र शास्त्र के अनुसार, दिव्य आत्मा को परमात्मा की शक्ति के रूप में बताया गया है जो विशेष अवसरों पर अस्थाई तौर पर कुछ लोगों के साथ रहती है । परन्तु प्रभु येशु के साथ सिर्फ दिव्य आत्मा रहता ही नहीं है , वह अपने सारे भक्तों को दिव्य आत्मा का दीक्षा भी देगा । जिससे दिव्य आत्मा उनको हमेशा की शक्ति और मार्गदर्शन दे (यह प्रभु येशु के मृत्यु को पराजित करने के बाद और भी सत्या साबित हुआ) ।
g1:9 गलील प्रदेश इस्राएल का यह उत्तरी राज्य था । नासरत गाँव इसी राज्य में स्थित था । इस गाँव में प्रभु येशु बड़े हुए और अपना अधिकतर समय बिताया ।
h1:13 परमेश्वर के दूत (ईश-दूत, स्वर्ग-दूत, और फ़रिश्ते भी कहते हैं) यह मानव नहीं हैं, परन्तु आत्माएं हैं जो कभी-कभी मनुष्यों का रूप भी धारण कर लेती हैं । परमात्मा ने उन्हें बनाया है ताकि वे मनुष्यों तक उसके संदेश पहुंचा सकें और लोगों की सुरक्षा और सेवा कर सकें । इन दूतों की आराधना नहीं करनी चाहिए केवल परमत्मा ही अराधना के योग्य है (इब्रा 1:19, मत्ती 18:10, दिव्य प्रकाशन 19:10) ।
i1:17 लोगों के मछुआरे प्रभु येशु अपने शिष्यों को सिखाएँगे कि उनका राज्य का शुभ संदेश कैसे फैलाना है –- दिव्य आत्मा की शक्ति, प्रचार, प्रेम और सेवा द्वारा ।
j1:21 विश्राम दिवस (सब्त का दिन) विश्राम दिवस सप्ताह में एक दिन होता था जिसमें लोग अपने काम से आराम किया करते थे । उत्पत्ति की पुस्तक में यह लिखा है कि परमात्मा ने छः दिन तक संसार की रचना की और सातवाँ दिन आराम किया क्योंकि उनका कार्य पूरा हो गया था । अरमेश्वर ने कहा कि लोगों को छः दिन काम करना चाहिए, फिर सातवे दिन आराम करें और परमेश्वर की भक्ति करें । (निर्गमन 20:8-11; 35:2-3; व्यवस्था 5:12-15)
k1:22 शास्त्री शास्त्री पेशेवर समूह था जिसने धर्मगुरू मोशे की आचरण संहिता (देखें 1:4) की व्याख्या की, विशेषतः न्यायिक मुकद्दमों में । वे आम तौर पर प्रभु येशु का विरोध करते थे ।
l1:23 अशुद्ध आत्मा (दुष्ट आत्माएं भी कहलाती है) ये अशुद्ध आत्माएं मरे हुए व्यक्तियों की नहीं होती; परन्तु शैतान द्वारा भेजी दुष्ट आत्माएं होती हैं । शैतान इन सब दुष्ट आत्माओं का प्रधान है और ये अशुद्ध आत्माएं मनुष्य के शरीर में घुस कर उससे मन चाहा काम कराती हैं और उसे बहुत कष्ट देती हैं । अक्सर शुरुआत में ये अशुद्ध आत्माएं सुखदायी और आकर्षित रूप में दिखाई देती हैं, परन्तु शैतान की तरह, इनका लक्ष्य परमात्मा पर आधारित न होकर छल, बीमारी और दुष्टता से भरा होता है (2 कुरिन्थियों 11:14) । कभी-कभी व्यक्ति को स्वयं पता नहीं होती कि उसमें दुष्ट आत्मा है और वह लालच, हिंसा, लोभ व्यभिचार में फंसता चला जाता हैं । प्रभु येशु ने भक्तों को अशुद्ध आत्मा से स्वयं को बचाने और दूसरे लोगों को इससे मुक्त करने का पूरा अधिकार दिया गया है ।
m1:44 धर्मगुरु मोशे के आदेश अनुसार भेंट अर्पित करो धर्मगुरु मोशे के काल में (लगभग 1500 ई०पु०) जिस व्यक्ति को कोढ़ होता था उसे रीती के अनुसार अशुद्ध घोषित करके समाज और समुदाय से अलग रहने को कहा जाता था । अगर व्यक्ति कोढ़ से स्वस्थ हो जाता था तो उसे अपने आप को पुरोहित को दिखा कर बलि का चढ़ावा देना होता था जिससे पुरोहित उस व्यक्ति के स्वस्थ होने की पुष्टि करके उसे फिर समाज और समुदाय में रहने के की घोषणा कर सके ।