परमात्मा के तेजस्वी सेवक
प्रभु येशु
भक्त मरकुस रचित शुभ संदेश
परिचय
यह प्रभु येशु के जीवन पर आधारित चार जीवनियों (मत्ती, मरकुस, लूका, योहन) में से दूसरी है । भक्त मरकुस आरम्भिक सत्संग के सदस्य थे (देखिये “दिव्य आत्मा के कार्य ” 12:12,25; 15:37), परन्तु वह बारह शिष्यों में से नहीं थे । यह माना जाता है कि मरकुस को प्रभु येशु के बारे में जानकारी स्वयं शिष्य पतरस ने दी थी जो प्रभु येशु के तीन नज़दीक शिष्यों में से एक थे ।
भक्त मरकुस ने प्रभु येशु को परमात्मा के तेजस्वी सेवक के रूप में दिखाया है । परमात्मा ने प्रभु येशु को शिक्षा देने, स्वस्थ करने, दुष्ट आत्माओं को निकालने, तूफान रोकने और पाप माफ़ करने का पूरा अधिकार दिया है । इन सब चीजों में प्रभु येशु लोगों पर अधिकार जताने नहीं आए थे, परन्तु यह शिक्षा देने आए थे कि हम सब परमात्मा की छत्र-छाया में जीवन बिताएं । प्रभु येशु ने कहा कि वह, तेजस्वी मानव पुत्र, दूसरों की सेवा लेने नहीं, परन्तु उनकी मुक्ति के मूल्य में अपने प्राण देने आया है (10:45) । उन्होंने ऐसा ही किया और हमें भी ऐसा करने को सिखाते हैं । उनके शुभ संदेश सुने और उनका मार्गदर्शन करें ।
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दीक्षा गुरु योहन और उनका संदेश
[परमात्मा-पुत्र]a [परमात्मा-पुत्र] इस्राएल के सब लोगों और उनके ईश्वर के साथ नज़दीक सम्बन्धों के सन्दर्भ में प्रयोग “परमात्मा-पुत्र” किया जाता था (होशे 11:1) । इसके साथ ही, यह विशेष सन्दर्भ इस्राएल के राजा के लिए जो परमात्मा का प्रतिनिधित्व करते थे (जैसे राजा दाविद और सालोमन), उन्हें “परमात्मा-पुत्र” भी कहा जाता था । यहाँ पर प्रभु येशु का प्रकटीकरण एक परमात्मा के सम्पूर्ण और अनोखे पुत्र, इस्राएल के राजा, और राजाओं के राजा के रूप में हुआ है । मुक्तिदाता येशु के बारे में शुभ संदेशb मुक्तिदाता येशु के शुभ संदेश यह “शुभ संदेश” परमात्मा के आने वाले शासन का संदेश; परमेश्वर के शुभ संदेश की भविष्यवाणी बहुत साल पहले कर दी गई थी (यशायाह 40:9, 52:7) और अब दुनिया में प्रभु येशु द्वारा इसकी घोषणा की गई है । उन्होंने पाप, बीमारी, प्रकृति, और दुष्ट आत्माओं के ऊपर अपनी राजसी शक्ति को दिखाया, परन्तु उन्होंने नम्रता से कष्टों को सहा जिससे पूरे संसार को मुक्ति प्राप्त हो । की यहाँ से शुरुआत होती है । परमेश्वार के प्रवक्ताc परमेश्वर के प्रवक्ता (“ईश-प्रवक्ता,” नबी” और “भविष्यवक्ता” के नाम से भी जाने जाते है) परमेश्वर के प्रवक्ता के शुद्ध सन्देश को (बिना अपने शब्दों को मिलाए) सीधे लोगों तक पहुंचाते है । यहूदी पवित्र शास्त्र में, यशायाह जैसे, 48 पुरुष ईश-प्रवक्ताओं के सन्देश शामिल किए गए है और 7 महिला ईश-प्रवक्ताओं के सन्देश भी शामिल किए गए हैं । उस समय के लोगों के लिए ही केवल उनके सन्देश नहीं थे, परन्तु भविष्य के लिए भी थे; विशेष तौर पर प्रभु येशु के बारे में बताते है — जैसे इस सन्देश में ईश-प्रवक्ता यशायाह (जो प्रभु येशु से कई सौ साल पहले थे) दीक्षा गुरु योहन ने प्रभु येशु के आने की भविष्यवाणी की । यशायाह [और दूसरे ईश-प्रवक्ताओं]^ की पुस्तकों में लिखा है: “देख, मैं तेरे आगे अपना दूत भेज रहा हूँ; वह तेरे लिए मार्ग तैयार करेगा । जंगल में कोई ऊंची आवाज़ में पुकार रहा है: ‘परमेश्वर का मार्ग तैयार करो, उसके पथ सीधे बनाओ ।’ ” यशायाह 40:3, मलाकी 3:1
दीक्षा गुरु योहन जंगल में आए [और जल–दीक्षा दे रहे थे]^; वह पाप से माफ़ी प्राप्त करने के लिए मन फिराने की दीक्षाd प्रभु येशु और गुरु योहन दोनों ने अपने प्रवचन देते समय लोगों को जीवन की दिशा और मन बदलने के लिए कहा । लोग स्वार्थ और पाप की दिशा में चलते हैं और उनका मन भी वही लगा रहता है । परन्तु प्रभु येशु ने अपने प्रवचनों और अपने जीवन के द्वारा लोगों को अवसर दिया कि वे परमात्मा की ओर मुड़े । परन्तु, इसका अर्थ संन्यास लेना नहीं है बल्कि संसार में रहते हुए पूरे रूप से परमात्मा की कृपा प्राप्त कर उसकी आज्ञा पर चलना है । का प्रचार करते थे ।
सारा यहूदा प्रदेशe प्रभु येशु के काल में इस्राएल देश के तीन राज्यों में से एक राज्य था । यहूदा प्रदेश वह है जहाँ प्रभु येशु का जन्म हुआ (बेथलेहेम नामक एक गाँव), और यही पर प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित था (राजधानी यरूशलेम में) । और सब यरूशलेम-निवासी उनके पास आने और अपने पापों को स्वीकार कर यरदन नदी में उनसे जल दीक्षा लेने लगे ।
गुरु योहन ऊंट के रोयाँ का कपड़े पहिनते और कमर में चमड़े का कटिबन्ध बांधते थे । टिड्डी और वनमधु उनका आहार था ।
उन्होंने यह घोषित किया: “मुझसे अधिक शक्तिशाली व्यक्ति मेरे पीछे आ रहा है । मैं इस योग्य भी नहीं हूँ कि झुक कर उसके जूतों के बन्ध खोलूँ । 8 मैंने तुम्हें जल से दीक्षा दी है, परन्तु वह तुम्हें दिव्य आत्मा से दीक्षाf यहूदी पवित्र शास्त्र के अनुसार, दिव्य आत्मा को परमात्मा की शक्ति के रूप में बताया गया है जो विशेष अवसरों पर अस्थाई तौर पर कुछ लोगों के साथ रहती है । परन्तु प्रभु येशु के साथ सिर्फ दिव्य आत्मा रहता ही नहीं है , वह अपने सारे भक्तों को दिव्य आत्मा का दीक्षा भी देगा । जिससे दिव्य आत्मा उनको हमेशा की शक्ति और मार्गदर्शन दे (यह प्रभु येशु के मृत्यु को पराजित करने के बाद और भी सत्या साबित हुआ) । देंगे ।”
प्रभु येशु की जल दीक्षा
उन दिनों प्रभु येशु ने गलील प्रदेशg गलील प्रदेश इस्राएल का यह उत्तरी राज्य था । नासरत गाँव इसी राज्य में स्थित था । इस गाँव में प्रभु येशु बड़े हुए और अपना अधिकतर समय बिताया । के नासरत नगर से आकर गुरु योहन से यरदन नदी में जल दीक्षा ली । 10  प्रभु येशु जल से बाहर निकल ही रहे थे कि उन्होंने आकाश को खुलते और दिव्य आत्मा को सफ़ेद कबूतर के समान अपने ऊपर उतरते देखा । 11 तब आकाश से यह आवाज सुनाई दी: “तू मेरा प्रिय पुत्र है; मैं तुझसे बहुत खुश हूँ ।”
12  दिव्य आत्मा ने प्रभु येशु को तुरन्त जंगल में भेजा । 13 वहां शैतान चालीस दिन तक उन्हें परखता रहा । प्रभु येशु वन-पशुओं के बीच रहते थे और ईश्वर के दूतh परमेश्वर के दूत (ईश-दूत, स्वर्ग-दूत, और फ़रिश्ते भी कहते हैं) यह मानव नहीं हैं, परन्तु आत्माएं हैं जो कभी-कभी मनुष्यों का रूप भी धारण कर लेती हैं । परमात्मा ने उन्हें बनाया है ताकि वे मनुष्यों तक उसके संदेश पहुंचा सकें और लोगों की सुरक्षा और सेवा कर सकें । इन दूतों की आराधना नहीं करनी चाहिए केवल परमत्मा ही अराधना के योग्य है (इब्रा 1:19, मत्ती 18:10, दिव्य प्रकाशन 19:10) । उनकी सेवा करते थे ।
सेवा-कार्य का आरम्भ
14  गुरु योहन के बन्दी होने के बाद प्रभु येशु गलील प्रदेश में आए और परमात्मा [के धर्म-राज्य] का शुभ-संदेश सुनाने लगे । 15 उनका कहना था, “समय पूरा हुआ और परमात्मा का धर्म-राज्य निकट आ पहुंचा है । पाप से मन फिराओ और शुभ संदेश पर विश्वास करो ।”
16  प्रभु येशु गलील की झील के किनारे पर टहल रहे थे । तब उन्होंने शिमौन पतरस और उसके भाई अंद्रियास को झील में जाल डालते देखा, क्योंकि वे मछुआरे थे । 17  प्रभु येशु ने उनसे कहा, “आओ, मेरे शिष्य बनकर मेरे पीछे चलो, मैं तुम्हें लोगों के मछुआरेi लोगों के मछुआरे प्रभु येशु अपने शिष्यों को सिखाएँगे कि उनका राज्य का शुभ संदेश कैसे फैलाना है –- दिव्य आत्मा की शक्ति, प्रचार, प्रेम और सेवा द्वारा । बनाऊंगा ।” 18 वे तुरन्त अपने जालों को छोड़कर उनके पीछे हो लिए ।
19 कुछ आगे बढ़ने पर गुरु येशु ने जबदी के पुत्र जयकब और उसके भाई योहन को देखा । वे नाव में जाल सुधार रहे थे । 20  गुरु येशु ने उन्हें तुरन्त बुलाया । वे अपने पिता जबदी को मजदूरों के साथ छोड़ कर गुरु येशु के पीछे हो लिए ।
कफरनहूम नगर में उपदेश और आश्चर्यकर्म
21  गुरु येशु और उनके शिष्य कफरनहूम नगर में आए और प्रभु येशु विश्राम-दिवसj विश्राम दिवस (सब्त का दिन) विश्राम दिवस सप्ताह में एक दिन होता था जिसमें लोग अपने काम से आराम किया करते थे । उत्पत्ति की पुस्तक में यह लिखा है कि परमात्मा ने छः दिन तक संसार की रचना की और सातवाँ दिन आराम किया क्योंकि उनका कार्य पूरा हो गया था । अरमेश्वर ने कहा कि लोगों को छः दिन काम करना चाहिए, फिर सातवे दिन आराम करें और परमेश्वर की भक्ति करें । (निर्गमन 20:8-11; 35:2-3; व्यवस्था 5:12-15) पर सत्संग भवन में जाकर उपदेश देने लगे । 22 लोग उनकी शिक्षा पर हैरान हुए, क्योंकि वह शास्त्रियोंk शास्त्री शास्त्री पेशेवर समूह था जिसने धर्मगुरू मोशे की आचरण संहिता (देखें 1:4) की व्याख्या की, विशेषतः न्यायिक मुकद्दमों में । वे आम तौर पर प्रभु येशु का विरोध करते थे । के समान नहीं परन्तु अधिकार के साथ उपदेश देते थे ।
23 उनके सत्संग भवन में एक मनुष्य था जिसमें अशुद्ध आत्माl अशुद्ध आत्मा (दुष्ट आत्माएं भी कहलाती है) ये अशुद्ध आत्माएं मरे हुए व्यक्तियों की नहीं होती; परन्तु शैतान द्वारा भेजी दुष्ट आत्माएं होती हैं । शैतान इन सब दुष्ट आत्माओं का प्रधान है और ये अशुद्ध आत्माएं मनुष्य के शरीर में घुस कर उससे मन चाहा काम कराती हैं और उसे बहुत कष्ट देती हैं । अक्सर शुरुआत में ये अशुद्ध आत्माएं सुखदायी और आकर्षित रूप में दिखाई देती हैं, परन्तु शैतान की तरह, इनका लक्ष्य परमात्मा पर आधारित न होकर छल, बीमारी और दुष्टता से भरा होता है (2 कुरिन्थियों 11:14) । कभी-कभी व्यक्ति को स्वयं पता नहीं होती कि उसमें दुष्ट आत्मा है और वह लालच, हिंसा, लोभ व्यभिचार में फंसता चला जाता हैं । प्रभु येशु ने भक्तों को अशुद्ध आत्मा से स्वयं को बचाने और दूसरे लोगों को इससे मुक्त करने का पूरा अधिकार दिया गया है । थी । वह चिल्ला उठा, 24 “नासरत-निवासी येशु, [आप हमारे पास से चले जाइए] हमें आपसे क्या काम? क्या आप हमें नष्ट करने आए हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं, ‘परमात्मा के पवित्र जन’!”
25  प्रभु येशु ने उसे डांटकर कहा, “चुप रह और उसमें से निकल आ ।” 26 अशुद्ध आत्मा उस मनुष्य को झकझोर कर और चिल्ला कर उसमें से निकल गई ।
27 इस पर सब लोग हैरान रह गए, और आपस में कहने लगे, “यह क्या है? एक नई शिक्षा! यह अशुद्ध आत्माओं को [अधिकार के साथ] आज्ञा देते हैं, और वे उनकी आज्ञा मान लेती हैं ।” 28  प्रभु येशु का नाम जल्दी ही गलील प्रदेश में सब जगह फैल गया ।
पतरस की सास और अन्य लोगों को स्वस्थ करना
29  गुरु येशु और उनके शिष्य सत्संग भवन से निकल कर सीधे शिमौन और अंद्रियास के घर गए । जयकब और योहन उनके साथ थे । 30 वहां शिमौन की सास बुखार में पड़ी थी । लोगों ने तुरन्त उसके विषय में प्रभु येशु को बताया । 31 वह नज़दीक आए और हाथ पकड़ कर उसे उठाया । उसका बुखार [तुरंत] उतर गया और वह सब की सेवा करने लगी ।
32 शाम के समय सूर्य डूबने पर लोग सब बीमारों और दुष्ट आत्मा से जकड़े मनुष्यों को प्रभु येशु के पास लाए, 33 और सारा नगर घर के दरवाज़े पर देखने के लिए इकट्ठा हो गए । 34 तब प्रभु येशु ने अलग-अलग बीमारियों से परेशान लोगों को ठीक किया और उनमें से अनेक दुष्ट आत्माओं को निकाला; परन्तु उन दुष्ट आत्माओं को बोलने नहीं दिया; क्योंकि वे प्रभु येशु को पहचानती थीं ।
प्रार्थना के लिए एकान्त में जाना
35 सुबह, जब अन्धेरा ही था, प्रभु येशु उठे और घर से बाहर निकल कर किसी एकांत स्थान में चले गए । वहां वह प्रार्थना करने लगे । 36 उधर शिमौन और उनके साथी उनकी खोज में निकले । 37 जब प्रभु येशु उन्हें मिले तब वे उनसे बोले, “सब लोग आपको ढूँढ रहे हैं ।”
38  प्रभु येशु ने कहा, “आओ, हम पास के अन्य गांवों में चलें कि मैं वहां पर भी शुभ संदेश सुनाऊं, क्योंकि मैं इसी लिए आया हूँ ।” 39 तब गुरु येशु ने सारे गलील प्रदेश में घूम-घूम कर उनके सत्संग भवनों में प्रचार किया और दुष्ट आत्माओं को निकाला ।
कोढ़ी को शुद्ध करना
40 एक कोढ़ी प्रभु येशु के पास आया और [घुटने टेक कर] निवेदन करने लगा, “यदि आप चाहें तो मुझे शुद्ध और ठीक कर सकते हैं ।”
41  प्रभु येशु [गुस्से में थे]^ फिर भी दया से भरकर अपना हाथ बढ़ाया और उसे छू कर कहा, “निश्चय मैं चाहता हूं कि तुम शुद्ध हो जाओ ।” 42 और तुरन्त उसका कोढ़ दूर हो गया और वह शुद्ध हो गया । 43 तब प्रभु येशु ने उसको तुरन्त भेज दिया, और यह सख्त चेतावनी दी 44 “किसी से कुछ न कहना; जाओ अपने आपको पुरोहित को दिखाओ और धर्मगुरु मोशेm धर्मगुरु मोशे के आदेश अनुसार भेंट अर्पित करो धर्मगुरु मोशे के काल में (लगभग 1500 ई०पु०) जिस व्यक्ति को कोढ़ होता था उसे रीती के अनुसार अशुद्ध घोषित करके समाज और समुदाय से अलग रहने को कहा जाता था । अगर व्यक्ति कोढ़ से स्वस्थ हो जाता था तो उसे अपने आप को पुरोहित को दिखा कर बलि का चढ़ावा देना होता था जिससे पुरोहित उस व्यक्ति के स्वस्थ होने की पुष्टि करके उसे फिर समाज और समुदाय में रहने के की घोषणा कर सके । के आदेश के अनुसार भेंट अर्पित करो, जिससे लोगों को तुम्हारी शुद्धि का प्रमाण मिले ।”
45 परन्तु वह बाहर जाकर खुल कर इस बात की चर्चा करने लगा और इस घटना के बारे में सब लोगों को बताने लगा । परिणाम यह हुआ कि प्रभु येशु नगरों में आसानी से नहीं जा सके परन्तु एकांत स्थानों में रहे । इस पर भी चारों ओर से लोग उनके पास आते रहे ।

a1:1 [परमात्मा-पुत्र] इस्राएल के सब लोगों और उनके ईश्वर के साथ नज़दीक सम्बन्धों के सन्दर्भ में प्रयोग “परमात्मा-पुत्र” किया जाता था (होशे 11:1) । इसके साथ ही, यह विशेष सन्दर्भ इस्राएल के राजा के लिए जो परमात्मा का प्रतिनिधित्व करते थे (जैसे राजा दाविद और सालोमन), उन्हें “परमात्मा-पुत्र” भी कहा जाता था । यहाँ पर प्रभु येशु का प्रकटीकरण एक परमात्मा के सम्पूर्ण और अनोखे पुत्र, इस्राएल के राजा, और राजाओं के राजा के रूप में हुआ है ।

b1:1 मुक्तिदाता येशु के शुभ संदेश यह “शुभ संदेश” परमात्मा के आने वाले शासन का संदेश; परमेश्वर के शुभ संदेश की भविष्यवाणी बहुत साल पहले कर दी गई थी (यशायाह 40:9, 52:7) और अब दुनिया में प्रभु येशु द्वारा इसकी घोषणा की गई है । उन्होंने पाप, बीमारी, प्रकृति, और दुष्ट आत्माओं के ऊपर अपनी राजसी शक्ति को दिखाया, परन्तु उन्होंने नम्रता से कष्टों को सहा जिससे पूरे संसार को मुक्ति प्राप्त हो ।

c1:2 परमेश्वर के प्रवक्ता (“ईश-प्रवक्ता,” नबी” और “भविष्यवक्ता” के नाम से भी जाने जाते है) परमेश्वर के प्रवक्ता के शुद्ध सन्देश को (बिना अपने शब्दों को मिलाए) सीधे लोगों तक पहुंचाते है । यहूदी पवित्र शास्त्र में, यशायाह जैसे, 48 पुरुष ईश-प्रवक्ताओं के सन्देश शामिल किए गए है और 7 महिला ईश-प्रवक्ताओं के सन्देश भी शामिल किए गए हैं । उस समय के लोगों के लिए ही केवल उनके सन्देश नहीं थे, परन्तु भविष्य के लिए भी थे; विशेष तौर पर प्रभु येशु के बारे में बताते है — जैसे इस सन्देश में ईश-प्रवक्ता यशायाह (जो प्रभु येशु से कई सौ साल पहले थे) दीक्षा गुरु योहन ने प्रभु येशु के आने की भविष्यवाणी की ।

1:3 यशायाह 40:3, मलाकी 3:1

d1:4 प्रभु येशु और गुरु योहन दोनों ने अपने प्रवचन देते समय लोगों को जीवन की दिशा और मन बदलने के लिए कहा । लोग स्वार्थ और पाप की दिशा में चलते हैं और उनका मन भी वही लगा रहता है । परन्तु प्रभु येशु ने अपने प्रवचनों और अपने जीवन के द्वारा लोगों को अवसर दिया कि वे परमात्मा की ओर मुड़े । परन्तु, इसका अर्थ संन्यास लेना नहीं है बल्कि संसार में रहते हुए पूरे रूप से परमात्मा की कृपा प्राप्त कर उसकी आज्ञा पर चलना है ।

e1:5 प्रभु येशु के काल में इस्राएल देश के तीन राज्यों में से एक राज्य था । यहूदा प्रदेश वह है जहाँ प्रभु येशु का जन्म हुआ (बेथलेहेम नामक एक गाँव), और यही पर प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित था (राजधानी यरूशलेम में) ।

f1:7 यहूदी पवित्र शास्त्र के अनुसार, दिव्य आत्मा को परमात्मा की शक्ति के रूप में बताया गया है जो विशेष अवसरों पर अस्थाई तौर पर कुछ लोगों के साथ रहती है । परन्तु प्रभु येशु के साथ सिर्फ दिव्य आत्मा रहता ही नहीं है , वह अपने सारे भक्तों को दिव्य आत्मा का दीक्षा भी देगा । जिससे दिव्य आत्मा उनको हमेशा की शक्ति और मार्गदर्शन दे (यह प्रभु येशु के मृत्यु को पराजित करने के बाद और भी सत्या साबित हुआ) ।

g1:9 गलील प्रदेश इस्राएल का यह उत्तरी राज्य था । नासरत गाँव इसी राज्य में स्थित था । इस गाँव में प्रभु येशु बड़े हुए और अपना अधिकतर समय बिताया ।

h1:13 परमेश्वर के दूत (ईश-दूत, स्वर्ग-दूत, और फ़रिश्ते भी कहते हैं) यह मानव नहीं हैं, परन्तु आत्माएं हैं जो कभी-कभी मनुष्यों का रूप भी धारण कर लेती हैं । परमात्मा ने उन्हें बनाया है ताकि वे मनुष्यों तक उसके संदेश पहुंचा सकें और लोगों की सुरक्षा और सेवा कर सकें । इन दूतों की आराधना नहीं करनी चाहिए केवल परमत्मा ही अराधना के योग्य है (इब्रा 1:19, मत्ती 18:10, दिव्य प्रकाशन 19:10) ।

i1:17 लोगों के मछुआरे प्रभु येशु अपने शिष्यों को सिखाएँगे कि उनका राज्य का शुभ संदेश कैसे फैलाना है –- दिव्य आत्मा की शक्ति, प्रचार, प्रेम और सेवा द्वारा ।

j1:21 विश्राम दिवस (सब्त का दिन) विश्राम दिवस सप्ताह में एक दिन होता था जिसमें लोग अपने काम से आराम किया करते थे । उत्पत्ति की पुस्तक में यह लिखा है कि परमात्मा ने छः दिन तक संसार की रचना की और सातवाँ दिन आराम किया क्योंकि उनका कार्य पूरा हो गया था । अरमेश्वर ने कहा कि लोगों को छः दिन काम करना चाहिए, फिर सातवे दिन आराम करें और परमेश्वर की भक्ति करें । (निर्गमन 20:8-11; 35:2-3; व्यवस्था 5:12-15)

k1:22 शास्त्री शास्त्री पेशेवर समूह था जिसने धर्मगुरू मोशे की आचरण संहिता (देखें 1:4) की व्याख्या की, विशेषतः न्यायिक मुकद्दमों में । वे आम तौर पर प्रभु येशु का विरोध करते थे ।

l1:23 अशुद्ध आत्मा (दुष्ट आत्माएं भी कहलाती है) ये अशुद्ध आत्माएं मरे हुए व्यक्तियों की नहीं होती; परन्तु शैतान द्वारा भेजी दुष्ट आत्माएं होती हैं । शैतान इन सब दुष्ट आत्माओं का प्रधान है और ये अशुद्ध आत्माएं मनुष्य के शरीर में घुस कर उससे मन चाहा काम कराती हैं और उसे बहुत कष्ट देती हैं । अक्सर शुरुआत में ये अशुद्ध आत्माएं सुखदायी और आकर्षित रूप में दिखाई देती हैं, परन्तु शैतान की तरह, इनका लक्ष्य परमात्मा पर आधारित न होकर छल, बीमारी और दुष्टता से भरा होता है (2 कुरिन्थियों 11:14) । कभी-कभी व्यक्ति को स्वयं पता नहीं होती कि उसमें दुष्ट आत्मा है और वह लालच, हिंसा, लोभ व्यभिचार में फंसता चला जाता हैं । प्रभु येशु ने भक्तों को अशुद्ध आत्मा से स्वयं को बचाने और दूसरे लोगों को इससे मुक्त करने का पूरा अधिकार दिया गया है ।

m1:44 धर्मगुरु मोशे के आदेश अनुसार भेंट अर्पित करो धर्मगुरु मोशे के काल में (लगभग 1500 ई०पु०) जिस व्यक्ति को कोढ़ होता था उसे रीती के अनुसार अशुद्ध घोषित करके समाज और समुदाय से अलग रहने को कहा जाता था । अगर व्यक्ति कोढ़ से स्वस्थ हो जाता था तो उसे अपने आप को पुरोहित को दिखा कर बलि का चढ़ावा देना होता था जिससे पुरोहित उस व्यक्ति के स्वस्थ होने की पुष्टि करके उसे फिर समाज और समुदाय में रहने के की घोषणा कर सके ।